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नज़्म
जवाब-ए-शिकवा
क़ल्ब में सोज़ नहीं रूह में एहसास नहीं
कुछ भी पैग़ाम-ए-मोहम्मद का तुम्हें पास नहीं
अल्लामा इक़बाल
शेर
कल चौदहवीं की रात थी शब भर रहा चर्चा तिरा
कुछ ने कहा ये चाँद है कुछ ने कहा चेहरा तिरा
इब्न-ए-इंशा
ग़ज़ल
या वो थे ख़फ़ा हम से या हम हैं ख़फ़ा उन से
कल उन का ज़माना था आज अपना ज़माना है
जिगर मुरादाबादी
ग़ज़ल
ज़माना वारदात-ए-क़ल्ब सुनने को तरसता है
इसी से तो सर आँखों पर मिरा दीवान लेते हैं
फ़िराक़ गोरखपुरी
नज़्म
निसार मैं तेरी गलियों के
गर आज तुझ से जुदा हैं तो कल बहम होंगे
ये रात भर की जुदाई तो कोई बात नहीं