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नज़्म
वो सुब्ह कभी तो आएगी
मजबूर बुढ़ापा जब सूनी राहों की धूल न फाँकेगा
मासूम लड़कपन जब गंदी गलियों में भीक न माँगेगा
साहिर लुधियानवी
ग़ज़ल
फ़ना बुलंदशहरी
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नज़्म
उमीद
मा'सूम लड़कपन जब गंदी गलियों में भीक न माँगेगा
हक़ माँगने वालों को जिस दिन सूली न दिखाई जाएगी
साहिर लुधियानवी
ग़ज़ल
साहिर लुधियानवी
ग़ज़ल
जान सी शय बिक जाती है एक नज़र के बदले में
आगे मर्ज़ी गाहक की इन दामों तो सस्ती है
फ़ानी बदायुनी
ग़ज़ल
आले रज़ा रज़ा
ग़ज़ल
तुम्हारी ज़ुल्फ़ों से ख़ुशबू की भीक लेने को
झुकी झुकी सी घटाएँ बुला रही हैं तुम्हें