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ग़ज़ल
वस्ल की रात न जाने क्यूँ इसरार था उन को जाने पर
वक़्त से पहले डूब गए तारों ने बड़ी दानाई की
क़तील शिफ़ाई
नज़्म
जवाहर-लाल नेहरू
जिस ने ज़रदार-ए-मईशत को गवारा न किया
जिस को आईन-ए-मुसावात पे इसरार रहा