aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
परिणाम "بار_بار"
वी. बार्तोल्ड
1869 - 1930
लेखक
नीली बार पब्लिकेशन्स
पर्काशक
इदरीस बाबर
born.1973
शायर
ख़ुमार बाराबंकवी
1919 - 1999
सुरूर बाराबंकवी
1919 - 1980
बासिर सुल्तान काज़मी
born.1953
अंजुम बाराबंकवी
born.1964
बारी
बाबर रहमान शाह
born.1994
बाबर अली असद
born.1980
इलियास बाबर आवान
born.1976
आज़र बाराबंकवी
अब्दुल्लाह बाबर
शादाँ बराबंकवी
सज्जाद बाबर
1939 - 2018
बार-बार जीते हैं बार-बार मरते हैंयूँ वफ़ा की दुनिया में अपने दिन गुज़रते हैं
आती है बात बात मुझे बार बार यादकहता हूँ दौड़ दौड़ के क़ासिद से राह में
वा'दा क्यूँ बार बार करते होख़ुद को बे-ए'तिबार करते हो
आप करते हैं बार बार नहींहम को हाँ का भी ए'तिबार नहीं
धोके खाता रहा बार बार आदमीफिर भी करता रहा ए'तिबार आदमी
शायरी में इश्क़ की कहानी पढ़ते हुए आप बार बार सहरा से गुज़रे होंगे। ये सहरा ही आशिक़ की वहशतों और उस की जुनूँ-कारी का महल-ए-वक़ू है। यही वह जगह है जहाँ इश्क़ का पौदा बर्ग-ओ-बार लाता है। सहरा पर ख़ूबसूरत शायरी का ये इन्तिख़ाब पढ़िए।
हवा का ज़िक्र आपको शायरी में बार-बार मिलेगा। हवा का किरदार ही इतना मुख़्तलिफ़-उल-जिहात और मुतनव्वे है कि किसी न किसी सम्त से इस का ज़िक्र आ ही जाता है। कभी वो चराग़ों को बुझाती है तो कभी जीने का इस्तिआरा बन जाती है और कभी ज़रा सी ख़ुनकी लिए हुए सुब्ह की सैर का हासिल बन जाती है। हवा को मौज़ू बनाने वाले अशआर का ये इन्तिख़ाब आप के लिए हाज़िर है।
उर्दू शायरी में बसंत कहीं-कहीं मुख्य पात्र के तौर पर सामने आता है । शायरों ने बहार को उसके सौन्दर्यशास्त्र के साथ विभिन्न और विविध तरीक़ों से शायरी में पेश किया है ।उर्दू शायरी ने बसंत केंद्रित शायरी में सूफ़ीवाद से भी गहरा संवाद किया है ।इसलिए उर्दू शायरी में बहार को महबूब के हुस्न का रूपक भी कहा गया है । क्लासिकी शायरी के आशिक़ की नज़र से ये मौसम ऐसा है कि पतझड़ के बाद बसंत भी आ कर गुज़र गया लेकिन उसके विरह की अवधि पूरी नहीं हुई । इसी तरह जीवन के विरोधाभास और क्रांतिकारी शायरी में बसंत का एक दूसरा ही रूप नज़र आता है । यहाँ प्रस्तुत शायरी में आप बहार के इन्हीं रंगों को महसूस करेंगे ।
बार-बारبار بار
again and again, repeatedly, often, now and again
लगातार
Bar Bar
गौहर शेख़ पूर्वी
ग़ज़ल
काव्य संग्रह
Barish, Barish
संजीव जैसवाल संजय
प्रथम बुक्स
बादबान
फ़िल्मी-नग़्मे
आज़ादी के बाद बिहार के उर्दू अदबी रिसाइल
अता आबिदी
शोध
Baat Baat Tazgi
साक़िब साही
नात
Abr-e-Gohar Bar
मिर्ज़ा ग़ालिब
Bahr-e-Zaman Bahr-e-Zaban
नूर अहमद मेरठी
तज़्किरा / संस्मरण / जीवनी
गंजी बार
ताहिरा इक़बाल
महिलाओं की रचनाएँ
Bar-e-Khatir
शौकत थानवी
पत्र
Dulle Di Bar
असद सलीम शैख
भारत का इतिहास
Moin Mubeen Bahar Daur Shams-o-Sukoon Zameen
इमाम अहमद रज़ा खां बरेलवी
Tilism-e-Gauhar-e-Bar
Bar-e-Musalsal
ज़ियाउल हसन
शाइरी
Hasti-e-Bar-e-Tala
ख़्वाजा कमालुद्दीन
क्यूँ चमक उठती है बिजली बार बारऐ सितमगर ले न अंगड़ाई बहुत
सहरा से बार बार वतन कौन जाएगाक्यूँ ऐ जुनूँ यहीं न उठा लाऊँ घर को मैं
बे-सबब बार बार आती हैयाद बे-इख़्तियार आती है
यूँ बार बार मुझ को सदाएँ न दीजिएअब वो नहीं रहा हूँ कोई दूसरा हूँ मैं
आ कि दो-चार दिन की ज़िंदगी हैकोई आता है बार-बार कहाँ
आज वो बार-बार याद आयाऔर बे-इख़्तियार याद आया
हँसता है बार बार मिरा यार देख करमुझ को मुसीबतों में गिरफ़्तार देख कर
काठ की हंडिया चढ़ी कब बार बारखो दिया झूटे ने अपना ए'तिबार
मिन्नतें बार बार करता हूँआप को शर्मसार करता हूँ
तुम्हीं बताओ पुकारा है बार बार किसेअज़ीज़ कहते हैं ग़म-हा-ए-रोज़गार किसे
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