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ग़ज़ल
वो नए गिले वो शिकायतें वो मज़े मज़े की हिकायतें
वो हर एक बात पे रूठना तुम्हें याद हो कि न याद हो
मोमिन ख़ाँ मोमिन
नज़्म
रक़ीब से!
तुझ पे बरसा है उसी बाम से महताब का नूर
जिस में बीती हुई रातों की कसक बाक़ी है
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
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विषय
बाम
बाम शायरी
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नज़्म
निसार मैं तेरी गलियों के
बहुत है ज़ुल्म के दस्त-ए-बहाना-जू के लिए
जो चंद अहल-ए-जुनूँ तेरे नाम-लेवा हैं
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
ग़ज़ल
जो नक़ाब-ए-रुख़ उठा दी तो ये क़ैद भी लगा दी
उठे हर निगाह लेकिन कोई बाम तक न पहुँचे
शकील बदायूनी
ग़ज़ल
न हुआ नसीब क़रार-ए-जाँ हवस-ए-क़रार भी अब नहीं
तिरा इंतिज़ार बहुत किया तिरा इंतिज़ार भी अब नहीं