aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
परिणाम "باورچی"
कृष्ण बिहारी नूर
1926 - 2003
शायर
अटल बिहारी वाजपेयी
1924 - 2018
नज़ीर बाक़री
गणेश बिहारी तर्ज़
1932 - 2008
एस. एच. बिहारी
1920 - 1987
अहमर नदीम
born.1998
मुंशी बिहारी लाल मुश्ताक़ देहलवी
1835 - 1908
अशरफ़ बाक़री
born.1944
बाज़ग़ बिहारी
बारी अलीग
1906 - 1949
लेखक
अहक़र झांसवी
1880 - 1959
बावन बिहारी लाल माथुर शाद
1896 - 1969
बारी
ज़हीर रानी बनोरी
अनवर बारी
born.1951
हामिद का दिल बैठ गया। कलेजा मज़बूत कर के बोला, तीन पैसे लोगे? और आगे बढ़ा कि दुकानदार की घुरकियाँ न सुने, मगर दुकानदार ने घुरकियाँ न दीं। दस्त-पनाह उसकी तरफ़ बढ़ा दिया और पैसे ले लिए। हामिद ने दस्त-पनाह कंधे पर रख लिया, गोया बंदूक़ है और शान से...
एक अजीब क़िस्म का खिंचाव उसके आज़ा में पैदा हो गया था जिसके बाइस उसे बहुत तकलीफ़ होती थी। इस तकलीफ़ की शिद्दत जब बढ़ जाती तो उसके जी में आता कि अपने आपको एक बड़े हावन में डाल दे और किसी से कहे, “मुझे कूटना शुरू कर दो।” बावर्चीख़ाने...
रास्ते में उसने फिर वही दो ताज़ा ज़बह किए हुए बकरे देखे। उनमें से एक को अब कसाई ने लटका दिया था, दूसरा तख़्ते पर पड़ा था। जब मसऊद दुकान पर से गुज़रा तो उसके दिल में ख़्वाहिश पैदा हुई कि वो गोश्त को जिसमें से धुआँ उठ रहा था...
फ़ारस रोड की एक तवाइफ़...
ख़ालिद उस आवाज़ को सुनते ही अपने वालिद की उंगली पकड़ कर कहने लगा,“अब्बा जी चलो चलें! तमाशा तो शुरू हो गया है!” “कौन सा तमाशा?” ख़ालिद के बाप ने अपने ख़ौफ़ को छुपाते हुए कहा।...
इश्क़ आरम्भ से ही उर्दू शायरी का पसंदीदा विषय रहा है। रेख़्ता ने इस विषय पर 20 बेहतरीन अशआर का चयन किया है | चयन शेर की लोकप्रियता एवं स्तर पर आधारित है | हमें स्वीकार है के इस चयन में कईं बेहतरीन अशआर शामिल होने से रह गए होंगे | किसी बेहतर शेर का सुझाव कमेंट सेक्शन द्वारा किया जा सकता है | उचित शेर को 20 बेहतरीन अशआर की सूचि में शामिल किया जा सकता है | रेख़्ता सूचि के किसी संशोधित स्वरुप में आप की भागीदारी का अभिलाषी है |
उर्दू शायरी में बसंत कहीं-कहीं मुख्य पात्र के तौर पर सामने आता है । शायरों ने बहार को उसके सौन्दर्यशास्त्र के साथ विभिन्न और विविध तरीक़ों से शायरी में पेश किया है ।उर्दू शायरी ने बसंत केंद्रित शायरी में सूफ़ीवाद से भी गहरा संवाद किया है ।इसलिए उर्दू शायरी में बहार को महबूब के हुस्न का रूपक भी कहा गया है । क्लासिकी शायरी के आशिक़ की नज़र से ये मौसम ऐसा है कि पतझड़ के बाद बसंत भी आ कर गुज़र गया लेकिन उसके विरह की अवधि पूरी नहीं हुई । इसी तरह जीवन के विरोधाभास और क्रांतिकारी शायरी में बसंत का एक दूसरा ही रूप नज़र आता है । यहाँ प्रस्तुत शायरी में आप बहार के इन्हीं रंगों को महसूस करेंगे ।
उर्दू शायरी में बसंत कहीं-कहीं मुख्य पात्र के तौर पर सामने आता है । शायरों ने बसंत को उसके सौन्दर्यशास्त्र के साथ विभिन्न और विविध तरीक़ों से शायरी में पेश किया है ।उर्दू शायरी ने बसंत केंद्रित शायरी में सूफ़ीवाद से भी गहरा संवाद किया है ।इसलिए उर्दू शायरी में बहार को महबूब के हुस्न का रूपक भी कहा गया है । क्लासिकी शायरी के आशिक़ की नज़र से ये मौसम ऐसा है कि पतझड़ के बाद बसंत भी आ कर गुज़र गया लेकिन उसके विरह की अवधि पूरी नहीं हुई । इसी तरह जीवन के विरोधाभास और क्रांतिकारी शायरी में बसंत का एक दूसरा ही रूप नज़र आता है । यहाँ प्रस्तुत शायरी में आप बहार के इन्हीं रंगों को महसूस करेंगे ।
बावर्चीباورچی
cook, chef
खाना पकानेवाला, सूपकार, पाचक, रसोइया।।
Desi Angrezi Bawarchi Khana
हरबंस लाल बत्रा
Tarjuma-e-Tuzuk-e-Babri Urdu
ज़हीरुद्दीन बाबर
इतिहास
Naya Bawarchi Khana
आमना बेगम
महिलाओं की रचनाएँ
Bawarchi Khana
रज़िया ख़ानम बिंत हमीद
Company Ki Hukoomat
भारत का इतिहास
Islami Tareekh-o-Tahzeeb
इस्लामिक इतिहास
आमिना बेगम
ख़ालिक़ बारी
अमीर ख़ुसरो
डायरेक्ट्री
Punjabi Padhai Likhai
सीता राम बाहरी
Hamd Bari
हाजी मोहम्मद शफ़ी
Mithila In the Nineteenth Century
हेतुकर झा
Tareekh Kya Hai ?
एजुकेशन / शिक्षण
Doosri Barfbari Se Pahle
कृष्ण चंदर
Babar Nama
मोहम्मद क़ासिम सिद्दीक़ी
शख़्सियत
दुख़ सुख़
काव्य संग्रह
साबिर: “उस की तबीअ’त तो उसी दिन से ख़राब है जिस दिन तुम वहाँ से निकलीं। कोई दो हफ़्ता तक तो शब-ओ-रोज़ अन्ना अन्ना की रट लगाता रहा। और अब एक हफ़्ता से खांसी और बुख़ार में मुब्तिला है। सारी दवाएं कर के हार गया। कोई नफ़ा ही नहीं होता।...
रात के खाने पर अल्मास के वालिद के साथ मुल्की सियासत से वाबस्ता हाई फिनांस पर तबादला-ए-ख़्यालात करने के बाद वो थके-हारे अपनी जा-ए-क़ियाम पर पहुंचते और वायलिन निकाल कर धुनें बजाने लगते, जो उसकी संगत में पैरिस में बजाया करते थे, वो दोनों हर तीसरे दिन एक दूसरे को...
जब कभी बैठे बिठाए, मुझे आपा याद आती है तो मेरी आँखों के आगे छोटा सा बिल्लौरी दीया आ जाता है जो नीम लौ से जल रहा हो। मुझे याद है कि एक रात हम सब चुपचाप बावर्चीख़ाने में बैठे थे।मैं, आपा और अम्मी जान, कि छोटा बद्दू भागता हुआ...
“पानी नहीं, औरत!” ये कह कर ज्ञान नीम अंधेरे कोरिडोर में दाख़िल हुआ, उसके पीछे एक छोटे से क़द की लड़की थी। ज्ञान को फ़र्श पर फैले हुए पानी का कुछ एहसास न हुआ। लड़की ने पायजामा ऊपर उठा लिया और छोटे छोटे क़दम उठाती ज्ञान के पीछे चली गई।...
आ'म तौर पर ये समझा जाता है कि बदज़ाइक़ा खाना पकाने का हुनर सिर्फ़ ता'लीम याफ़्ता बेगमात को आता है लेकिन हम आ'दाद-ओ-शुमार से साबित कर सकते हैं कि पेशेवर ख़ानसामां इस फ़न में किसी से पीछे नहीं। असल बात ये है कि हमारे हाँ हर शख़्स ये समझता है...
“बीवी-बच्चे?” जोगिंदर सिंह ने ख़त का मज़मून अंग्रेज़ी ज़बान में सोचते हुए कहा, “होंगे... ज़रूर होंगे... हाँ हैं, मैंने उनके एक मज़मून में पढ़ा था, उनकी बीवी भी है और एक बच्ची भी है।” ये कह कर जोगिंदर सिंह उठा, ख़त का मज़मून उसके दिमाग़ में मुकम्मल हो चुका था।...
रात को जब वो खुले आसमान के नीचे अपने घर की छत पर अकेला बिस्तर पर करवटें बदल रहा था तो इस संग-ए-मरमर के टुकड़े का एक मस्रफ़ उसके ज़हन में आया। ख़ुदा के कारख़ाने अजीब हैं। वो बड़ा ग़फ़ूरुर्रहीम है। क्या अजब उसके दिन फिर जाएँ। वो क्लर्क दर्जा...
मिर्ज़ा, “ये बाज़ी आपकी मात होगी।” मीर, “मेरी मात क्यों होने लगी।”...
“क्यों?” “इसलिए कि वो सईद के मुक़ाबले में बेहतर इंसान है।”...
चारपाई एक अच्छे बक्स का भी काम देती है। तकिया के नीचे हर किस्म की गोलियां जिनके इस्तेमाल से आपके सिवा कोई और वाक़िफ़ नहीं होता। एक आध रुपया, चंद धेले पैसे, स्टेशनरी, किताबें, रिसाले, जाड़े के कपड़े, थोड़ा बहुत नाश्ता, नक़्श-ए-सुलेमानी, फ़ेहरिस्त-ए-दवाख़ाना, सम्मन, जा'ली दस्तावेज़ के कुछ मुसव्वदे। ये...
Devoted to the preservation & promotion of Urdu
A Trilingual Treasure of Urdu Words
Online Treasure of Sufi and Sant Poetry
World of Hindi language and literature
The best way to learn Urdu online
Best of Urdu & Hindi Books