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मर्सिया
चूसा है ये लब मिसल-ए-रत्ब हक़ के वली ने
याक़ूत का बोसा लिया किस रोज़ अली ने
मिर्ज़ा सलामत अली दबीर
शेर
बे-ख़ुदी में ले लिया बोसा ख़ता कीजे मुआफ़
ये दिल-ए-बेताब की सारी ख़ता थी मैं न था
मीरज़ा अबुल मुज़फ़्फर ज़फ़र
शेर
बोसा देते नहीं और दिल पे है हर लहज़ा निगाह
जी में कहते हैं कि मुफ़्त आए तो माल अच्छा है
मिर्ज़ा ग़ालिब
ग़ज़ल
लुटाते हैं वो दौलत हुस्न की बावर नहीं आता
हमें तो एक बोसा भी बड़ी मुश्किल से मिलता है
जलील मानिकपूरी
ग़ज़ल
बोसे की तो है ख़्वाहिश पर कहिए क्यूँकि उस से
जिस का मिज़ाज लब पर हर्फ़-ए-सवाल बाँधे