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नज़्म
जवाब-ए-शिकवा
तर्बियत आम तो है जौहर-ए-क़ाबिल ही नहीं
जिस से तामीर हो आदम की ये वो गिल ही नहीं
अल्लामा इक़बाल
शेर
मुज़्तर ख़ैराबादी
ग़ज़ल
सितम के रंग हैं हर इल्तिफ़ात-ए-पिन्हाँ में
करम-नुमा हैं तिरे जौर सर-ब-सर फिर भी
फ़िराक़ गोरखपुरी
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नज़्म
दोस्ती का हाथ
तुम्हें भी ज़िद है कि मश्क़-ए-सितम रहे जारी
हमें भी नाज़ कि जौर-ओ-जफ़ा के आदी हैं
अहमद फ़राज़
मर्सिया
अदल आगे बढ़ा हुक्म ये देता है क़ज़ा को
हाँ बांध ले ज़ुल्म-ओ-सितम-ओ-जोर-ओ-जफ़ा को