aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
परिणाम "رسوخ"
मिर्ज़ा हादी रुस्वा
1858 - 1931
शायर
शहपर रसूल
born.1956
ग़ुलाम रसूल मेहर
1895 - 1971
लेखक
रसूल हम्ज़ातोव
1923 - 2003
रसूल जहाँ बेगम मख़फ़ी बदायूनी
1903 - 1976
औलाद-ए-रसूल क़ुद्सी
born.1963
अरशद रसूल बदायूनी
born.1985
आयाज़ रसूल नाज़की
born.1951
निशात किशतवाडी
born.1909
रसूल साक़ी
born.1968
सय्यद ख़ादिमे रसूल ऐनी
सितवत रसूल
born.1938
मीर ग़ुलाम रसूल नज़ुकी
1910 - 1998
मौलवी ग़ुलाम रसूल
ग़ुलाम रसूल अशरफ़
born.1948
मैं ज़मान-ए-तालिब इ’लमी के उस दौर का हाल ज़रा तफ्सील से बयान करना चाहता हूँ क्यूँकि इससे एक तो आप मेरी ज़िंदगी के नशीब-ओ-फ़राज़ से अच्छी तरह वाक़िफ़ हो जायेंगे और इसके अ’लावा इससे यूनीवर्सिटी की बा’ज़ बे-क़ाएदगी का राज़ भी आप पर आशकार हो जायेगा। मैं पहले साल बी.ए....
“हथ लाईयाँ कुम्हलाँ नी लाजवंती दे बूटे!” अभी गीत की आवाज़ लोगों के कानों में गूँज रही थी। अभी सुबह भी नहीं हो पाई थी और मोहल्ला मुल्ला शकूर के मकान 414 की बिधवा अभी तक अपने बिस्तर में कर्बनाक सी अंगड़ाइयाँ ले रही थी कि सुंदर लाल का “गिराएँ”...
(4) दुनिया सोती थी, मगर दुनिया की ज़बान जाग गई थी। सुब्ह हुई तो ये वाक़िआ' बच्चे-बच्चे की ज़बान पर था और हर गली-कूचे से मलामत और तहक़ीर की सदाएँ आती थीं। गोया दुनिया में अब गुनाह का वुजूद नहीं रहा। पानी को दूध के नाम से बेचने वाले हुक्काम-सरकार,...
غالب کے اردو کے پہلے اور دوسرے دور کے کلام میں بعض خصوصیتیں مشترک ہیں، جن میں سب سے نمایاں یہ ہے کہ وہ چند خطوط کھینچ کر چھوڑ دیتے ہیں اور تصویر کو مکمل کرنا پڑھنے یا سننے والے پر چھوڑ دیتے ہیں۔ کبھی خطوط ایسے ہوتے ہیں جن...
चवन्नी लाल को अच्छी पोशिश और अच्छे खाने का बहुत शौक़ था। तबीयत में नफ़ासत थी। चुनांचे वो लोग जो उसके मकान में एक दफ़ा भी गए। उसके सलीक़े की तारीफ़ अब तक करते हैं। एन डब्लू आर के एक नीलाम में उसने रेल के डिब्बे की एक सीट ख़रीदी...
आँसू पानी के सहज़ चंद क़तरे नहीं होते जिन्हें कहीं भी टपक पड़ने का शौक़ होता है बल्कि जज़्बात की शिद्दत का आईना होते हैं जिन्हें ग़म और ख़ुशी दोनों मौसमों में संवरने की आदत है। किस तरह इश्क आंसुओं को ज़ब्त करना सिखाता है और कब बेबसी सारे पुश्ते तोड़ कर उमड आती है आईए जानने की कोशिश करते हैं आँसू शायरी के हवाले से.
आँसू पानी के सहज़ चंद क़तरे नहीं होते जिन्हें कहीं भी टपक पड़ने का शौक़ होता है बल्कि जज़्बात की शिद्दत का आईना होते हैं जिन्हें ग़म और ख़ुशी दोनों मौसमों में संवरने की आदत है। किस तरह इश्क आंसुओं को ज़ब्त करना सिखाता है और कब बेबसी सारे पुश्ते तोड़ कर उमड आती है आईए जानने की कोशिश करते हैं आँसू शायरी के हवाले सेः
रुसूख़رُسُوخ
प्रेम- व्यवहार, मेल-जोल, जानकारी, दक्षता, कुशलता, महारत, मज़बूती, अधिकारीयों से सम्बन्ध, राजनीतिज्ञों से रिश्ते
रसूख़رَسُوخ
रुसूख़ वालाرُسُوخ والا
प्रभावशाली, विश्वसनीय
रुसूख़ पानाرُسُوخ پانا
पक्का हो जाना, जम जाना
Umrao Jaan Ada
सामाजिक
उमराव जान अदा
Mera Dagestan
जीवनी
नॉवेल / उपन्यास
Hamare Rasool
मोहम्मद अब्दुल हई फ़ारूक़ी
कहानी
Hayat-e-Rasool
अली असग़र चौधरी
Iqbal Aur Ishq-e-Rasool
सय्यद मोहम्मद अब्दुर्रशीद
इस्लामियात
Matalib-e-Bang-e-Dara
व्याख्या
मतालिब-ए-बाल-ए-जिबरील
Intikhab-e-Mirza Hadi Ruswa
Rasool-e-Akram Ki Siyasi Zindagi
मोहम्मद हमीदुल्लाह
Ahsan-ul-Qasas
Zaat-e-Shareef
मनोवैज्ञानिक
Mirza Ruswa : Hayat Aur Novel Nigari
आदम शैख़
जुम्मन ने बे-एतिनाई से जवाब दिया, “रुपया क्या यहाँ फलता है?” ख़ाला जान ने बिगड़ कर कहा, “तो मुझे कुछ नान नमक चाहिए या नहीं?”...
“जब मेरी दोनों आँखें सलामत थीं”, जैक्सन मुस्कुराया। किसी ना किसी तरह डार्थी हत्थे चढ़ गई। कमबख़्त कुँवारी भी नहीं थी मगर ऐसे फ़ेल मचाए कि बाप की मुख़ालिफ़त के बावजूद शादी कर ली। शायद वो अपनी शादी से ना-उम्मीद हो चुकी थी और ख़ुद उसकी घात में थी।...
मैं तज्ज़िया नहीं करना चाहता... हो सकता है आप, जब सादिक़ का हाल मुझसे सुनें तो उसको इंसानों की किसी और ही सफ़ में खड़ा कर दें, जिसमें बाबू गोपी नाथ की मूंछ का एक बाल भी न आ सका हो, लेकिन मैं समझूंगा कि आपके तज्ज़िये में ग़लती हुई...
ضبط کیا نہ ر از عشق، دیدہ تر نے کیا کیا دو رسوم 1885ء، 1908ء اس دور کا کلام، رنگ تغزل میں پختگی کا نمونہ ہے، طرز ادا میں سنجیدگی بڑھ گئی ہے۔ مضمون آفرینی پر توجہ زیادہ ہو گئی ہے۔ غزل میں اخلاقی و روحانی مضامین کی آمد بے...
वो तो कहिए ख़ुशनसीब थे कि क़ालीन बानी सीखने जेल नहीं भेजा गया, सिर्फ़ मुलाज़मत ही गई। ख़ैर ये तो जो कुछ हुआ, वो हुआ, सवाल तो ये था कि आख़िर हम अपनी किस जेब से मुलाज़मत निकाल कर उनके हवाले करते कि ऐ हमारी बीवी के मुहतरम फूफा ये...
“साइकिल पर नहीं जी मेरा मतलब है कार खड़ी है, जी मेरी।” फ़ख़्र सीधा खड़ा हो गया और बीबी उसके कंधे के बराबर नज़र आने लगी।...
वर्ना कुल्लियात-ए-इक़बाल का कोई सफ़ा खोलिए, आपको रिआयत, मुनासिबत और कहीं कहीं ईहाम की भी जलवागरी नज़र आएगी। मुम्किन है (बल्कि अग़लब है) कि इक़बाल ने इन चीज़ों को शऊरी तौर पर न इख़्तियार किया हो, लेकिन हर अच्छे शायर की तरह (और इक़बाल अच्छे ही नहीं, बड़े शायर भी...
"ये लोग एक दूसरे से हमदर्दी रखते हैं, मदद करते हैं एक दूसरे की।" दूसरे ने ख़ामोशी से कहा। औरत सन सी बैठी रही। क्या ये मुम्किन था?...
میں خود عالم ہوں، میرے باپ دادا عالم تھے۔ بھلا میں تو اس قسم کی فضولیات کی طرف توجہ بھی نہ کرتا مگر کیا کروں ضرور ت سب خیالات پر حاوی ہو گئی اور مجھے قیام مشاعرہ پر مجبور کیا لیکن بڑی مصیبت یہ ہے کہ ایک تو اس شہر...
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