aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
परिणाम "زبان"
डायरेक्टर क़ौमी कौंसिल बरा-ए-फ़रोग़-ए-उर्दू ज़बान, नई दिल्ली
पर्काशक
मुक़तद्रा क़ौमी ज़बान, इस्लामाबाद
फख्र ज़मान
born.1943
लेखक
राष्ट्रीय उर्दू भाषा विकास परिषद्, नई दिल्ली
शोएब ज़मान
born.1985
शायर
किताब ज़बान तेहरान
ज़मान कंजाही
गुरमनी मरकज़-ए-ज़बान-ओ-अदब, पाकिस्तान
मरकज़ी इदारा बरा-ए-हिंदुस्तानी ज़बान, कर्नाटक
इदारा-ए-ज़बान-ओ-उस्लूब, अलीगढ़
मर्कज़ बराये उर्दू ज़बान, हैदराबाद
इदारा-ए-ज़बान-ओ-अदब, मुरादाबाद
ज़बान प्रेस, दिल्ली
उर्दू ज़बान सेल, रोहतास
मजलिस-ए-ज़बान-ए-दफ़्तरी, पंजाब
बोलते क्यूँ नहीं मिरे हक़ मेंआबले पड़ गए ज़बान में क्या
मैं भी मुँह में ज़बान रखता हूँकाश पूछो कि मुद्दआ' क्या है
बात पर वाँ ज़बान कटती हैवो कहें और सुना करे कोई
तुम्हें पता तो चले बे-ज़बान चीज़ का दुखमैं अब चराग़ की लौ ही नहीं बनाऊँगा
वही इक ख़मोश नग़्मा है 'शकील' जान-ए-हस्तीजो ज़बान पर न आए जो कलाम तक न पहुँचे
क़सीदा एक अरबी शब्द है जिसका शाब्दिक अर्थ है "नियत और इरादा "। क़सीदा कविता का एक रूप और विधा है जिसमें कवि किसी की प्रशंसा करता है।
२०२२ ख़त्म हुआ आप लोगों ने उर्दू ज़बान-ओ -अदब और शाइरी से भरपूर मुहब्बत का इज़हार किया है । इस कलेक्शन में हम उन 10 नज़्मों को पेश कर रहे हैं जो रेख़्ता पर सबसे ज़्यादा पढ़ी गईं हैं।
फ़िराक़ गोरखपुरी की ये पाँच नज़्में उर्दू शायरी के पाठकों के लिए बेहद अहम् है . इन्हें पढ़ कर किसी पाठक को उर्दू भाषा का एक अनूठा ज़ायक़ा प्राप्त होता है .
ज़बानزبان
dialect, speech, language, tongue
Tareekh-e-Adab-e-Urdu
नूरुल हसन नक़वी
इतिहास
तारीख़-ए-अदब-ए-उर्दू
जमील जालिबी
Urdu Adab Ki Tahreekein
अनवर सदीद
क़वाइद-ए-उर्दू
मौलवी अब्दुल हक़
भाषा
Aam Lisaniyat
ज्ञान चंद जैन
उर्दू तदरीस जदीद तरीक़े और तक़ाज़े
रियाज़ अहमद
Urdu Adab Ki Mukhtasar Tareekh
Urdu Zaban-o-Qawaid
शफ़ी अहमद सिद्दीक़ी
नॉन-फ़िक्शन
उर्दू अदब की तारीख़
ज़ियाउर्रहमान सिद्दीक़ी
फ़ोर्ट विलियम कॉलेज की अदबी ख़िदमात
डॉ. उबैदा बेगम
शोध
Urdu Imla
रशीद हसन ख़ाँ
Urdu Adab Ki Tareekh
तबस्सुम काश्मीरी
उर्दू ज़बान का क़ाएदा
मोहम्मद इस्माईल
सीखने के संसाधन
Urdu Sarf-o-Nahv
तिरे जमाल की तस्वीर खींच दूँ लेकिनज़बाँ में आँख नहीं आँख में ज़बान नहीं
ज़बान-ए-ख़ार से निकली सदा-ए-बिस्मिल्लाहजुनूँ को जब सर-ए-शोरीदा पर सवार किया
चंद और लमहात जब इसी तरह ख़ामोशी से गुज़र गए तो कुलवंत कौर छलक पड़ी, लेकिन तेज़ तेज़ आँखों को बचा कर वो सिर्फ़ इस क़दर कह सकी, “ईशर सय्यां।” ईशर सिंह ने गर्दन उठा कर कुलवंत कौर की तरफ़ देखा, मगर उसकी निगाहों की गोलियों की ताब न ला...
यही वो शहर जो मेरे लबों से बोलता थायही वो शहर जो मेरी ज़बान देखता है
इसी लिए तो जो लिक्खा तपाक-ए-जाँ से लिखाजभी तो लोच कमाँ का ज़बान तीर की है
पयाम्बर न मयस्सर हुआ तो ख़ूब हुआज़बान-ए-ग़ैर से क्या शरह-ए-आरज़ू करते
एक एम.एससी. पास रेडियो इंजिनियर में जो मुसलमान था और दूसरे पागलों से बिल्कुल अलग थलग, बाग़ की एक ख़ास रविश पर, सारा दिन ख़ामोश टहलता रहता था, ये तब्दीली नुमूदार हुई कि उसने तमाम कपड़े उतार कर दफ़अदार के हवाले कर दिए और नंग-धड़ंग सारे बाग़ में चलना फिरना...
कई दिन गुज़र गए... सिराजुद्दीन को सकीना की कोई ख़बर न मिली। वो दिन भर मुख़्तलिफ़ कैम्पों और दफ़्तरों के चक्कर काटता रहता। लेकिन कहीं से भी उसकी बेटी का पता न चला। रात को वो बहुत देर तक उन रज़ाकार नौजवानों की कामयाबी के लिए दुआएं मांगता रहता। जिन्होंने...
वो आदमी मिला था मुझे उस की बात सेऐसा लगा कि वो भी बहुत बे-ज़बान है
दिल्ली आने से पहले वो अंबाला छावनी में थी जहां कई गोरे उसके गाहक थे। उन गोरों से मिलने-जुलने के बाइस वो अंग्रेज़ी के दस पंद्रह जुमले सीख गई थी, उनको वो आम गुफ़्तगु में इस्तेमाल नहीं करती थी लेकिन जब वो दिल्ली में आई और उसका कारोबार न चला...
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