aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
परिणाम "شاندار"
शहरयार
1936 - 2012
शायर
हिमायत अली शाएर
1926 - 2019
आग़ा शाइर क़ज़लबाश
1871 - 1940
मुईन शादाब
born.1971
शायर जमाली
1943 - 2008
अहमद शहरयार
born.1983
शायर लखनवी
1917 - 1989
शादाब जावेद
born.1995
शहनवाज़ फ़ारूक़ी
शहनाज़ परवीन सहर
born.1952
शाहिदा हसन
born.1953
लेखक
शहनाज़ नबी
गुंजन नागर शायर बकर
born.1984
आसिम शहनवाज़ शिबली
born.1962
साहिबा शहरयार
मैं ख़ुद भी इन को क्रो-मैग्नन समझती हूँये शानदार जनावर हैं दफ़्तरों का मख़ौल
जब मैंने बेगम जान को देखा तो वो चालीस-बयालिस की होंगी। उफ़, किस शान से वो मसनद पर नीम दराज़ थीं और रब्बो उनकी पीठ से लगी कमर दबा रही थी। एक ऊदे रंग का दोशाला उनके पैरों पर पड़ा था और वो महारानियों की तरह शानदार मालूम हो रही...
रौशनाई का शानदार इसराफ़सीधे सीधे से कुछ सियह धब्बे
मैंने जल कर कहा, "मुझे किसी की परवाह नहीं डाक्टर साहब अपने घर राज़ी, मैं अपने यहाँ ख़ुश।" उन्होंने हैरान होकर पूछा, "मेरी भी परवाह नहीं?" मैं कुछ कहने ही वाला था कि वो दुखी से हो गए और बार बार पूछने लगे।...
ताराबाई की आँखें तारों की ऐसी रौशन हैं और वो गर्द-ओ-पेश की हर चीज़ को हैरत से तकती है। दर असल ताराबाई के चेहरे पर आँखें ही आँखें हैं । वो क़हत की सूखी मारी लड़की है। जिसे बेगम अल्मास ख़ुरशीद आलम के हाँ काम करते हुए सिर्फ़ चंद माह...
हास्य और व्यंग्य असल में समाज की असमानताओं से फूटता है। अगर किसी समाज को सही ढंग से जानना हो तो उस समाज में लिखा गया हास्यात्मक, व्यंग्यात्मक साहित्य पढ़ना चाहिए। उर्दू में भी हास्यात्मक और व्यंग्यात्मक साहित्य की शानदार परंपरा रही है। मुश्ताक़ अहमद यूसुफ़ी, पतरस बुख़ारी, रशीद अहमद सिद्दीक़ी और बेशुमार अदीबों ने बेहतरीन हास्यात्मक, व्यंग्यात्मक लेख लिखे हैं। रेख़्ता पर ये गोशा उर्दू में लिखे गए ख़ूबसूरत और मशहूर मज़ाहिया और तन्ज़िया लेखों से आबाद है। पढ़िए और ज़िंदगी को ख़ुशगवार बनाइऐ।
विषयात्मक शायरी का यह पहला ऐसा ऑनलाइन संकलन है जहाँ आप अपनी पसन्द के किसी भी विषय पर शायरी के शानदार चयन तक पहुँच सकते हैं. अभी तक लगभग 250 से भी ज़्यादा विषयों पर पुराने व नये शायरों की बेहतरीन शायरी को एकत्र किया गया है, जिसमें निरंतर वृद्धि जारी है.
हिज्र मुहब्बत के सफ़र का वो मोड़ है, जहाँ आशिक़ को एक दर्द एक अथाह समंदर की तरह लगता है | शायर इस दर्द को और ज़ियादः महसूस करते हैं और जब ये दर्द हद से ज़ियादा बढ़ जाता है, तो वह अपनी तख्लीक़ के ज़रिए इसे समेटने की कोशिश करता है | यहाँ दी जाने वाली पाँच नज़्में उसी दर्द की परछाईं है |
शानदारشاندار
तड़क-भड़क वाला, ऐश्वर्य वाला
हिंदुस्तान का शानदार माज़ी
ए. एल. बाशिम
सांस्कृतिक इतिहास
Ulma-e-Hind Ka Shandar Mazi
सय्यद मोहम्मद मियाँ
Ulama-e-Hind Ka Shandar Mazi-e-Jadeed
मौलाना मोहम्म्द मियाँ
तज़्किरा / संस्मरण / जीवनी
Mukhtasar aur Jaame Tareekh Musalmanon ka shandar maazi
अब्दुल जब्बार अजमेरी
Jan 2011इतिहास
Lamhe Lamhe
तारिक़ शाहीन
शायरी तन्क़ीद
उर्दू मकतूब निगारी
शादाब तबस्सुम
आलोचना
Shahwar
मसरूर जहाँ
उपन्यास
Ulama-e-Hind Ka Shandar Mazi
Iqbal: Shair-o-Mufakkir
नूरुल हसन नक़वी
इक़बालियात तन्क़ीद
Ghalib : Shair-o-Maktoob Nigar
Wali Dakni
गोपी चंद नारंग
मज़ामीन / लेख
Zatal Nama
जाफ़र ज़टल्ली
शहर आशोब, हज्व, ज़टल नामा
Shahkar-e-Aruz-o-Balaghat
अनवर मीनाई
छंदशास्र
इस गुफ़्तुगू के दौरान में मुग़नी ये कह रहा था, “इंग्लिस्तान में एक आदमी है जो एक नज़र देख लेने के बाद फ़ौरन बता देता है कि इस क़ता ज़मीन का तूल-ओ-अ’र्ज़ क्या है, रक़्बा कितना है? उस ने अपने एक बयान में कहा था कि वो अपनी इस ख़ुदादाद...
शांता को ये रंग बहुत पसन्द है इसलिए कि ये मैला बहुत देर में होता है। उसे घरों में झाड़ू देना होती है। बर्तन साफ़ करने होते हैं, तीसरी चौथी मंज़िल तक पानी ढ़ोने होता है। वो भूरा रंग पसन्द नहीं करेगी तो क्या खिलते हुए शोख़ रंग गुलाबी, बसन्ती,...
दुनिया को शानदार का मतलब नहीं पतामतलब हमारे यार का मतलब नहीं पता
ग़ालिब जज़ाक अल्लाह और ये इस ग़ालिब की इज़्ज़त-अफ़ज़ाई की गई है जिसे सारी उम्र ये शिकायत रही, हमने माना कि दिल्ली में रहें खाएँगे क्या...
उस दिन से राहताँ को मा'मूल हो गया था कि वो शाम को एक रोटी पर दाल तरकारी रखकर लाती और जब तक माई खाने से फ़ारिग़ न हो जाती, वहीं पर बैठी माई की बातें सुनती रहती। एक दिन माई ने कहा था, “मैं तो हर वक़्त तैयार रहती...
नौकरानी: कैसी बातें मुंह से निकालते हो। बिस्तर-ए-मर्ग पर हों वो... नौकर: न छेड़ो उनके बिस्तर-ए-मर्ग का ज़िक्र... बड़ा शानदार होगा... ख़्वाह म-ख़्वाह मेरा जी चाहेगा कि उठा कर अपनी कोठरी में ले जाऊँ।...
चौधरी ख़ामोश रहा और मुझे एक बार फिर महसूस हुआ कि प्रकाश, चौधरी को आईना बना कर उसमें अपनी शक्ल देख रहा है और ख़ुद को गालियां दे रहा है। मैंने उसे कहा, “प्रकाश ऐसा लगता है चौधरी के बजाय तुम अपने आप को गालियां दे रहे हो।” ख़िलाफ़-ए-तवक़्क़ो उसने...
“जब ही तुमने कल रात आख़िरी रम्बा के बाद मुझसे शादी की दरख़ास्त की थी।” स्नेह ने हंसकर कहा। “और तुमने क्या जवाब दिया था”? उसने पूछा।...
शाम को सात बजे उसने दरवाज़ा खोला। करीम आया तो शारदा नज़रें झुकाए बाहर चली गई। करीम बहुत ख़ुश था। उसने नज़ीर से कहा, “आपने कमाल कर दिया… आप से सौ तो नहीं मांगता, पचास दे दीजिए।” नज़ीर शारदा से बेहद मुतमइन था। इस क़दर मुतमइन कि वो गुज़श्ता तमाम...
मुझसे रिवायत किया कामरेड बारी अलीग ने और उन्होंने सुना अपने दोस्त मिर्ज़ा काज़िम से और मिर्ज़ा काज़िम ने सुनाई आप-बीती और अब आप मुझसे सुनिए “मिर्ज़ा बीती” मेरे अलफ़ाज़ में और इसका सवाब पहुंचाइए ग़ालिब और गोएटे की अर्वाह को और दुआ कीजिए मेरे हक़ में। वल्लाह आलम बिलस्वाब......
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