aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
परिणाम "قابض"
क़ाबिल अजमेरी
1931 - 1962
शायर
क़ाबिल देहलवी
मोहम्मद अब्दुल अज़ीज़ क़ाबिल
लेखक
ज़फ़र क़ाबिल
पर्काशक
क़ाबिल गुलावठी
पाकिस्तानी फ़ौजी कश्मीर के लिए लड़ रहे थे या कश्मीर के मुसलमानों के लिए? अगर उन्हें कश्मीर के मुसलमानों ही के लिए लड़ाया जाता था तो हैदराबाद, और जूनागढ़ के मुसलमानों के लिए क्यों उन्हें लड़ने के लिए नहीं कहा जाता था और अगर ये जंग ठेट इस्लामी जंग थी...
حرؔ پکارا کہ زباں بند کراو نا ہموارقابلِ لعن ہے تو اور وہ تیرا سردار
मुफ़्लिसी मसनद-ए-ज़रदार पे क़ाबिज़ होगीमहल बदलेगा ज़माना भी बदल जाएगा
उधर से मुसलमान और इधर से हिंदू अभी तक आ जा रहे थे। कैम्पों के कैंप भरे पड़े थे। जिनमें ज़रब-उल-मिस्ल के मुताबिक़ तिल धरने के लिए वाक़ई कोई जगह नहीं थी। लेकिन इसके बावजूद उनमें ठूंसे जा रहे थे। ग़ल्ला नाकाफ़ी है। हिफ़्ज़ान-ए-सेहत का कोई इंतज़ाम नहीं। बीमारियां फैल...
پنڈت جی آپ کا شرہیں۔۔۔ خدا کی قسم اگر آپ میری جان لینا چاہیں تو ہر وقت حاضر ہے۔ میں جانتا ہوں بلکہ سمجھتا ہوں کہ آپ صرف اس لیے کشمیر کے ساتھ چمٹے ہوئے ہیں کہ آپ کو کشمیر سے کشمیری ہو نے کے باعث بڑی مقناطیسی قسم کی...
उर्दू भाषा-विज्ञान पर 20 चुनिंदा किताबें
‘याद’ को उर्दू शाइरी में एक विषय के तौर पर ख़ास अहमिय हासिल है । इस की वजह ये है कि नॉस्टेलजिया और उस से पैदा होने वाली कैफ़ीयत, शाइरों को ज़्यादा रचनात्मकता प्रदान करती है । सिर्फ़ इश्क़-ओ-आशिक़ी में ही ‘याद’ के कई रंग मिल जाते हैं । गुज़रे हुए लम्हों की कसक हो या तल्ख़ी या कोई ख़ुश-गवार लम्हा सब उर्दू शाइरी में जीवन के रंगों को पेश करते हैं । इस तरह की कैफ़ियतों से सरशार उर्दू शाइरी का एक संकलन यहाँ प्रस्तुत किया जा रहा है ।
क़ाबिज़قابض
a possessor, occupant, holder , holding
जिसका अधिकार हो, जिसका क़ब्ज़ा हो, कोष्ठ-ग्राहक, क़ब्ज़ करनेवाला पदार्थ ।
Deeda-e-Bedar
Diabetes Ek Qabil-e-Ilaj Marz
दाऊद अहमद शाहीन
Risala-e-qabz
पंडित ठाकुर दत्त शर्मा
Imam Hasan (Ek Qabil-e-Taqleed Abqari Shakhsiyat)
मोहम्मद इसमाईल आज़ाद फ़तेहपुरी
Risala-e-Hasoor-o-Basoor
हकीम मोहम्मद कबीरुद्दीन
Qabil-e-Taqleed Nazaer-o-Amsal
मोहम्मद शम्सुद्दीन सिद्दीक़ी
शिक्षाप्रद
Maleria par Qabu Paane mein Soviet Science ke Karname
सरगईफ़
विज्ञान
Act Qabza Arazii Mumalik
अननोन ऑथर
संविधान / आईन
Qabil Ajmeri: Shakhsiyat Aur Fan
ख़ालिद मुस्तफ़ा
विनिबंध
Qabil Bano
शहज़ाद अली शहज़ाद मलियानदी
अन्य
Zainab Intihai Qabil-e-Qadr Khatoon
अनीता राय
जीवनी
Hasoor-o-Basoor
Sair Ke Qabil Duniya
फ़सीह अकमल
कुल्लियात
Naqabil-e-Faramosh Yadein
Intikhab Tazirat-e-Hind Qabil-e-Istemal Har Adalat Faujdari
डॉ. छेदीलाल
इस्मत लिखती है; एक ज़रा सी मुहब्बत की दुनिया में कितने शौकत, कितने महमूद, अब्बास अस्करी, यूनुस और न जाने कौन कौन ताश की गड्डी की तरह फेंट कर बिखेर दिए गए हैं। कोई बताओ, उनमें से चोर पत्ता कौन सा है? शौकत की भूकी भूकी कहानियों से लबरेज़...
فرمایا نام قابض ارواح ہے مراہنگامۂ حیات کو اب فوت جانیو
हनीफ़ ने ये अलफ़ाज़ पढ़े तो उसकी आँखों में आँसू आ गए। भला हो उसका में “बेपनाह ग़म था।” बहुत अर्सा गुज़र गया, शोभा का कोई ख़त न आया। पूरा एक बरस बीत गया। डाक्टर ख़ान को उस का कोई पता न चला। शोभा अपनी मोटर उसके हवाले कर गई...
चालीस पचास लठ्ठ बंद आदमियों का एक गिरोह लूट मार के लिए एक मकान की तरफ़ बढ़ रहा था। दफ़्अतन उस भीड़ को चीर कर एक दुबला पतला अधेड़ उम्र का आदमी बाहर निकला। पलट कर उसने बलवाइयों को लीडराना अंदाज़ में मुख़ातब किया, “भाईयो, इस मकान में बे-अंदाज़ा दौलत...
ہاں یہ جائز ہے مداری کو مبارکباد دوں گویا گوری قوموں کو تو کھلے بندوں آزادی ہے کہ جہاں، جس خطہ میں، جس متن سے بھی چاہیں، قابض ہو جائیں، حکومت قائم کر لیں، ہر طرح ان کی حوصلہ افزائی ہی کی جائے گی کہ حکمرانی و جہانباری تو فطری...
उसके वालिद ने जो आख़िरी ख़त लिखा उसमें इस ख़्वाहिश का इज़हार किया गया था कि नज़ीर फ़ातिमा का फ़ोटो भेजे ताकि वो अपने रिश्तेदारों को दिखाएंगे, इसलिए कि वो उसके हुस्न की बड़ी तारीफ़ें कर चुका था। लेकिन बानिहाल जैसे दूर उफ़्तादा इलाक़े में वो फातो की तस्वीर कैसे...
माना कि तेरी दीद के क़ाबिल नहीं हूँ मैंतू मेरा शौक़ देख मिरा इंतिज़ार देख
“ए बी ममोला... ज़री आपे में रहना... मैं ख़ुद से नहीं आ गई। बड़ी भावज ने सौ दफ़ा’ बुलाया कि आकर मजलिस पढ़ जाओ... मजलिस पढ़ जाओ... मैं अपने घर से फ़ालतू नहीं हूँ कि मारी-मारी फिरूँ। और टके की डोमनियों की बातें सुनूँ। हाँ लो भाई डोली वापस करो…”,...
“मैं न जाऊँगा, ख़्वाह वो दस लाख भी दे। मुझे दस हज़ार या दस लाख लेकर करना भी क्या है। कल मर जाऊंगा फिर कौन भोगने वाला बैठा है?” चौकीदार चला गया। भगत ने पाँव आगे बढ़ाए। जैसे नशे में इंसान का जिस्म उसकी रूह से बाग़ी हो जाता है,...
क़ाबिज़ रहा है दिल पे जो सुल्तान की तरहआख़िर निकल गया शह-ए-ईरान की तरह
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