aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
परिणाम "مراقبہ"
मिराक़ मिर्ज़ा
born.1962
लेखक
मरातिब अख़्तर
शायर
मर्कज़ी मुराक़बा हाल, कराची
पर्काशक
मताबे अल-रशीद, मदीना
मनाक़िब मुरतज़वी
अनुवादक
काज़ुयो मुराता
मुरक़्क़ा-ए-इस्लाम पब्लिशिंग सोसाइटी, मुरादाबाद
मुरक़्क़ा आलम प्रेस, हरदोई
मुरक्क़ा, लख़नऊ
मोहम्मद इब्राहीम मक़्बा
संपादक
मराहिब क़ासमी
Zain-ul-Abedeen Maraghai
1840 - 1910
किसी गाँव में शंकर नामी एक किसान रहता था। सीधा-सादा ग़रीब आदमी था। अपने काम से काम, न किसी के लेने में, न किसी के देने में, छक्का-पंजा न जानता था। छल-कपट की उसे छूत भी न लगी थी। ठगे जाने की फ़िक्र न थी। विद्या न जानता था। खाना...
इस तरह पैकर तराशी में फ़नकार को किसी ख़्वाब या मुराक़बा की मंज़िल से गुज़रने और जज़्बे वग़ैरा को हयूले की शक्ल में पेश करने या किसी लम्हा ख़ास के तमाम ज़मानी और मकानी रिश्तों समेत तजसीमी शक्ल में पेश करने वग़ैरा के पुर-असरार अमल के बजाय अपने हवास-ए-ख़मसा को...
غالب نے پہلی بار یہ دکھایا کہ تصوف کے علاوہ (جس کی فکر میں وجدان کو زیادہ دخل ہوتا ہے) دوسری طرح کی فکر بھی شعر میں بروئے کار لائی جا سکتی ہے۔ ترقی پسند تحریک کو غالب کے متفکرانہ میلانات کی چنداں ضرورت نہ تھی کیونکہ اس کا تفکر...
’’سربات یہ ہے کہ آپ ہی اس ملک کے کرتا دھرتا ہیں۔ قرآئن کہتے ہیں کہ آپ کی نیت صاف نہیں رہی۔ میں آپ کی توجہ اس نہایت سنگین صورت حال کی طرف کرانا چاہتی ہوں۔ ذرا مراقبہ کیجئے کہاں گڑ بڑ ہے۔ ذرا کھوج لگائیے ورنہ یہ خون خرابا...
अल्लाह दिया चुप हो गया। बेरियों के पत्ते ख़ामोश थे, हवा शायद बहुत धीमी हो गई थी। सिर्फ़ क़दमों की चाप सुनाई दे रही थी। अल्लाह दिये की झोंपड़ी के क़रीब पहुँच कर सब लोग चारपाई पर बैठ गए। अल्लाह दिये ने हुक़्क़ा भी ताज़ा कर के रख दिया था।...
बीसवीं सदी का आरम्भिक दौर पूरे विश्व के लिए घटनाओं से परिपूर्ण समय था और विशेष तौर पर भारतीय उपमहाद्वीप के लिए यह एक बड़े बदलाव का युग था। नए युग की शुरुआत ने नई विचारधाराओं के लिए ज़मीन तैयार की और पश्चिम की विस्तारवादी आकांछाओं को गहरा आघात पहुँचाया। इन परिस्थितियों ने उर्दू शायरी की विषयवस्तु और मुहावरे भी पूरी तरह बदल दिए और इस बदलाव की अगुआई का श्रेय निस्संदेह अल्लामा इक़बाल को जाता है। उन्होंने पाठकों में अपने तेवर, प्रतीकों, बिम्बों, उपमाओं, पात्रों और इस्लामी इतिहास की विभूतियों के माध्यम से नए और प्रगतिशील विचारों की ऎसी ज्योति जगाई जिसने सब को आश्चर्यचकित कर दिया। उनकी शायरी की विश्व स्तर पर सराहना हुई साथ ही उन्हें विवादों में भी घसीटा गया। उन्हें पाठकों ने एक महान शायर के तौर पर पूरा - पूरा सम्मान दिया और उनकी शायरी पर भी बहुत कुछ लिखा गया है। उन्होंने बच्चों के लिए भी लिखा है और यहां भी उन्हें किसी से कमतर नहीं कहा जा सकता। 'सारे जहां से अच्छा हिन्दोस्तां हमारा' और 'लब पे आती है दुआ बन के तमन्ना मेरी' जैसी उनकी ग़ज़लों - नज़्मों की पंक्तियाँ आज भी अपनी चमक बरक़रार रखे हुए हैं। यहां हम इक़बाल के २० चुनिंदा अशआर आपके लिए प्रस्तुत कर रहे हैं। अगर आप हमारे चयन को समृद्ध करने में हमारी मदद करना चाहें तो आपका रेख्ता पर स्वागत है।
क़ब्र की तंगी, तारीकी और उस से वाबस्ता बहुत से भयानक और तकलीफ़-दह तसव्वुरात को शायरी में ख़ूब बर्ता गया है। ये अशआर ज़िदगी में रुक कर सोचने और अपना मुहासिबा करने पर मजबूर करते हैं। हमारा ये इन्तिख़ाब पढ़े और ज़िंदगी की हक़ीक़तों पर ग़ौर कीजिए।
मजबूरी ज़िंदगी में तसलसुल के साथ पेश आने वाली एक सूरत-ए-हाल है जिस में इंसान की जो थोड़ी बहोत ख़ुद-मुख़्तारियत है वो भी ख़त्म हो जाती और इंसान पूरी तरह से मजबूर हो जाता है और यहीं से वो शायरी पैदा होती है जिस में बाज़ मर्तबा एहतिजाज भी होता है और बाज़ मर्तबा हालात के मुक़ाबले में सिपर अंदाज़ होने की कैफ़ियत भी। हम इस तरह के शेरों का एक छोटा सा इंतिख़ाब पेश कर रहे हैं।
मुराक़िबाمراقبہ
meditation
संसार से हटकर ईश्वर में ध्यान लगाना, समाधि, अवधान, योग, धारणा।।
उर्दू मास मीड़िया
फ़ज़लुल हक़
इंतिख़ाब / संकलन
Muraqaba-e-Maut
ख़्वाजा अजीजुल हसन
काव्य संग्रह
Gulzar Nama
शाहिदा तबस्सुम
लेख
Azadi Ke Baad Maghribi Bangal Ka Urdu Adab
नईम अनीस
Tanqeed Ki Jamaliyat
अतीक़ुल्लाह
सौंदर्यशास्त्र
Suhail Azeemabadi Aur Unke Afsane
वहाब अशरफ़ी
Classiciyat Aur Romanviyat
अली जावेद
Mutala-e-Sir Syed Ahmad Khan
प्रो. अब्दुल हक़
हाली फ़न और शख़्सियत
शमीम फ़ारूक़ी
Muraqqa Shora-e-Urdu
ज़फ़र अब्बास
तज़्किरा / संस्मरण / जीवनी
इक़बालियात के सौ साल
मोहम्मद सुहैल उमर
Tareekh-e-Baghawat-e-Hind Atthara Sau Sattawan
कन्हैया लाल
राजनीतिक आंदोलन
Shamsur Rahman Farooqi
अहमद महफ़ूज़
मज़ामीन / लेख
Mushtaq Ahmad Yusufi
मज़हर अहमद
हास्य-व्यंग इतिहास और आलोचना
Basheer Badr
रज़िया हामिद
اللہ تعالیٰ اس کی روح کو نہ شرمائے، بے حد گندہ آدمی تھا میراجی۔ بہت بُو اس کے جسم سے اڑتی رہتی تھی۔ شاید یہ ان لوگوں میں سے تھا جنہیں یا تو دائی نہلاتی ہے یا چار بھائی۔ مگر اس غلیظ پیکر میں کس قدر لطیف روح تھی! روح...
मैं आख़िरी ज़ीने पर खड़ी हुई थी, इ’बादत-गाह से एक शबीह अगरबत्तियाँ थामे हुए, जो ताक़ में जलाई जाती हैं, नीचे उतर रही थी। ज़ा’फ़रानी रंग की ‘अबा में मलबूस जो रूमी चोग़े की तरह ढीली-ढाली थी। उसने मंदिर के एक हिस्से की तरफ़ इशारा किया जहाँ एक और शहनशीन...
مصاحب نے ہاتھ باندھ کر عرض کیا، ’’حضور یہ بھی کوئی پریشان ہونے کی بات ہے۔ شام کو افطاری سے پہلے جامع مسجد تشریف لے چلا کیجئے۔ عجب بہار ہوتی ہے۔ رنگ برنگ کے آدمی طرح طرح کے جمگھٹے دیکھنے میں آئیں گے۔ خدا کے دن ہیں۔ خدا والوں کی...
लाहौर से कलकत्ते का सफ़र दर पेश हो तो दो ही तरीक़े हैं। मक़दूर हो तो हवाई जहाज़ में सफ़र कीजिए। नाशतादान लाहौर में और शाम का खाना कलकत्ता में खाइए और मक़दूर न हो तो थोड़ा सा क्लोरोफ़ार्म जेब में रखकर सेकंड क्लास के डिब्बे में बैठ जाईए। जूंही...
’’میں پہلی بار نرودا سے اسپین کے شہر میڈرڈ میں ملا تھا جو ایک بہادر شہر تھا، لیکن اس کے اوپر موت کا سایہ تھا۔ سب سے پہلے میری نظر نرودا کے خدوخال پر پڑی جو ایک اداس اور سوچتے ہوئے انڈولوشین اور ایک مفرور اراکینین کے خط وخال تھے،...
बराबर में सड़क के किनारे अबू नुजूमी अपनी मैली दरी बिछाए, टूटी सी एक संदूक़ची सामने धरे, संदूक़ची के आस-पास गत्ते के टुकड़े सजाए कि किसी पे पंजा बना है, किसी पे नक़्श-ए-रूहानी, किसी पे हिदायात-ओ-अमलियात, सर न्योढ़ाए, पीले काग़ज़ों वाली किसी पुरानी धुरानी किताब पे नज़रें जमाए बैठा रहता...
ہرتخلیق کار جب وہ تحقیقی عمل میں مبتلا ہوتا ہے تواپنی طبع اور مزاج کے مطابق بعض رسوم یا Rituals سے گزرتا ہے۔ مثلاً ایک نوبل انعام پانے والے مصنف کے بارے میں مشہور ہے کہ جب اسے کچھ کہنے کی طلب ہوتی تھی تو وہ اپنی ایک خاص ٹوپی...
मुराक़िबा में कोई आगे छम से इतराएतो फिर फ़क़ीर के दिल में भी चोर हो जाए
منّے، حضور والا اس کے فرائض کے لیے دفتر چھپیں، رنگت یہ نکالے، قوت یہ بخشے۔ علم یہ سکھائے۔ شب زندہ دار دل و دماغ حاضر۔ پھر پیتے ہی رگ رگ میں طاقت دوڑجائے۔ عضو عضو میں خون کے عوض طاقت نظر آئے۔ میر صاحب، ارے میاں یہ کرامت کیوں...
गुज़र न जाए कहीं ख़ामुशी में ये शब भीमुराक़िबा तो हुआ अब ज़रा जलाल में आ
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