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नज़्म
शिकवा
मुज़्तरिब-बाग़ के हर ग़ुंचे में है बू-ए-नियाज़
तू ज़रा छेड़ तो दे तिश्ना-ए-मिज़राब है साज़
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
मस्जिद-ए-क़ुर्तुबा
इश्क़ के मिज़राब से नग़्मा-ए-तार-ए-हयात
इश्क़ से नूर-ए-हयात इश्क़ से नार-ए-हयात
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
किस से मोहब्बत है
वो इक मिज़राब है और छेड़ सकती है रग-ए-जाँ को
वो चिंगारी है लेकिन फूँक सकती है गुलिस्ताँ को
असरार-उल-हक़ मजाज़
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नज़्म
अपनी मल्का-ए-सुख़न से
नाख़ुन किसी निगार का चाँदी के तार पर
मिज़राब-ए-अक्स-ए-क़ौस रग-ए-आबशार पर
जोश मलीहाबादी
ग़ज़ल
वो हवाएँ वो घटाएँ वो फ़ज़ा वो उस की याद
हम भी मिज़राब-ए-अलम से साज़-ए-दिल छेड़ा किए