aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
परिणाम "منہ_بند"
मुल्ला हुसैन बिन अली वाइज़
लेखक
मुल्ला अली कादरी
मुँह-बंद हसरतों को सुख़न-आश्ना करोतोड़ो सुकूत साज़-ए-ग़ज़ल इब्तिदा करो
जैसे मुँह-बंद कली रात के वीराने मेंसाँस लेना मुझे दुश्वार हुआ जाता है
भेजी हैं उस ने फूलों में मुँह-बंद सीपियाँइंकार भी अजब है बुलावा भी है अजब
किस किस का मुँह बंद करोगे किस किस को समझाओगेदिल की बात ज़बाँ पर ला के देखो तुम पछताओगे
करें कह दो मुँह बंद ग़ुंचे सब अपनामैं लिखती मुअम्मा हूँ उस के वहाँ का
अगर आपको बस यूँही बैठे बैठे ज़रा सा झूमना है तो शराब शायरी पर हमारा ये इन्तिख़ाब पढ़िए। आप महसूस करेंगे कि शराब की लज़्ज़त और इस के सरूर की ज़रा सी मिक़दार उस शायरी में भी उतर आई है। ये शायरी आपको मज़ा तो देगी ही, साथ में हैरान भी करेगी कि शराब जो ब-ज़ाहिर बे-ख़ुदी और सुरूर बख़्शती है, शायरी मैं किस तरह मानी की एक लामहदूद कायनात का इस्तिआरा बन गई है।
इश्क़-ओ-मोहब्बत में फ़िराक़, वियोग और जुदाई एक ऐसी कैफ़ियत है जिस में आशिक़-ओ-माशूक़ का चैन-ओ-सुकून छिन जाता है । उर्दू शाइरी के आशिक़-ओ-माशूक़ इस कैफ़ियत में हिज्र के ऐसे तजरबे से गुज़रते हैं, जिस का कोई अंजाम नज़र नहीं आता । बे-चैनी और बे-कली की निरंतरता उनकी क़िस्मत हो जाती है । क्लासिकी उर्दू शाइरी में इस तजरबे को ख़ूब बयान किया गया है । शाइरों ने अपने-अपने तजरबे के पेश-ए-नज़र इस विषय के नए-नए रंग तलाश किए हैं । यहाँ प्रस्तुत संकलन से आप को जुदाई के शेरी-इज़हार का अंदाज़ा होगा ।
मुँह-बंदمنہ بند
sealed
Chahardah Band
मीर मुज़फ़्फ़र हुसैन ज़मीर
क़ित'अ
Sahifa Hammam Bin Munabba
मोहम्मद हमीदुल्लाह
इस्लामियात
Kashf-ul-Haja
क़ाज़ी सनाउल्लाह पानी पती
Hum Daulat Mand Kyonkar Ban sakte Hain
हकीम राम किशन लाहौर
अर्थशास्त्र
Saheefa Hammam Bin Monabbih
Siyahi Ki Ek Boond
आनंद नारायण मुल्ला
काव्य संग्रह
Kashaful-Hajah
Maktoobat Ma Manaqib-e-Abi Abdullah Mohammad Bin Ismail Al-Bukhari Wa Fazeelat-e-Ibn-e-Taimiya
शाह वलीउल्लाह मोहद्दिस देहलवी
Khandani Mansooba Bandi
मिन्नतुल्लाह रहमानी
Deewan-e-Mulla Mohsin Faiz
मोहम्मद बिन मुर्तज़ा मोहसिन फ़ैज़
दीवान
Malabuda Minhu
मोलवी मुहिब्बुल्लाह
अनुवाद
Al-Kahaf-ul-Mateen Min Manhaj-il-Rasul-il-Ameen
अबु-अल-ख़ैर शम्सुद्दीन मोहम्मद बिन-अल-जज़री
नक्शबंदिया
Sahifah Hammam Bin Munabbih
मोहम्मद हमीदुल्लाह भट
Sahifa-e-Shahi
Saheefa-e-Hammam Bin Mamba
حیرت سے آنکھ کھل گئی منہ بند ہوگیا 30
मैं अभी तक सब्ज़ हूँमुँह-बंद इलायची की तरह
پر یار کے آگے بول سکتے ہی نہیںغالبؔ منہ بند ہو گیا ہے گویا
जब मैं ने मुँह बंद रखने के लिए कहातुम चीख़ पड़ीं
چپ رہ نہ سکا حضرت یزداں میں بھی اقبالؔ کرتا کوئی اس بندۂ گستاخ کا منہ بند...
उस ग़ार का मुँह बंद था फिर सेअजब बे-यावरी ना-आश्नाई थी
ख़्वाहिशों के ग़ार का मुँह बंद हैतुम हटा देना न वो पत्थर कहीं
गुलशन-ए-फ़िक्र की मुँह-बंद कलीशब-ए-महताब में वा होती है
अब तो हर ज़ख़्म की मुँह-बंद कलीलब-ए-इज़हार हुई जाती है
किया मुँह बंद सब का बात कहतेबला कुछ सेहर है उस की ज़बाँ में
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