aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
परिणाम "موزے"
डी. एस. मोले
लेखक
गयानेशवर मोले
शायर
ये कह के ओढ़ ली सर-ए-पुर-नूर पर रिदामोज़े पहन के गोद में शब्बीर को लिया
“आग लगे इस मुए हुक़्क़े को। इसी ने तो ये खाँसी लगाई है। जवान बेटी की तरफ़ भी देखते हो आँख उठा कर।” और अब्बा कुबरा की जवानी की तरफ़ रहम-तलब निगाहों से देखते। कुबरा जवान थी। कौन कहता था कि जवान थी। वो तो जैसे बिसमिल्लाह के दिन से...
मुजीब मुस्कुराया, “वो आदमी आदमी था... लेकिन उसमें ख़ुदा ने बहुत सी क़ुव्वतें बख़्शी थीं।” मस्ऊद ने पूछा, “मिसाल के तौर पर...”...
चारपाई ही खाने का कमरा भी होती है। बावर्ची-ख़ाना से खाना चला और उसके साथ पाँच-सात छोटे-बड़े बच्चे उतनी ही मुर्ग़ियाँ, दो-एक कुत्ते, बिल्ली और बे-शुमार मक्खियां आ पहुंचीं। सब अपने करीने से बैठ गईं। साहब-ए-ख़ाना सद्र-ए-दस्तरख़्वान हैं। एक बच्चा ज़्यादा खाने पर मार खाता है दूसरा बदतमीज़ी से खाने...
तिरे मोज़े यहीं पर रह गए हैंमैं इन से अपने दस्ताने बना लूँ
नये साल के मौक़े जर हम ने आपके लिए इन्तेख़ाब किया है कुछ बेहतरीन नज़्मों का। पढ़ें और अपने दोस्तों को पढ़वाएँ।
बोसा यानी चुंबन को उर्दू शाइरी की हर परंपरा में ख़ास अहमियत हासिल है। इश्क़-ओ-आशिक़ी के मामलात में ही इस के कई रंग नज़र आते हैं। उर्दू शाइरी में बोसे की तलब की कैफ़ियतों से ले कर माशूक़ के इनकार की सूरतों तक का बयान काफ़ी दिलचस्प है। यहाँ शोख़ी है, हास्य है, हसरत है और ग़ुस्से की मिली-जुली कैफ़ियतें हैं। प्रसुतुत शाइरी से आप को उर्दू शाइरी के कुछ ख़ास रंगों का अंदाज़ा होगा।
शोख़ी माशूक़ के हुस्न में मज़ीद इज़ाफ़ा करती है। माशूक़ अगर शोख़ न हो तो उस के हुस्न में एक ज़रा कमी रह जाती है। हमारे इन्तिख़ाब किए हुए इन अशआर में आप देखेंगे कि माशूक़ की शोख़ियाँ कितनी दिल-चस्प और मज़ेदार हैं इनका इज़हार अक्सर जगहों पर आशिक़ के साथ मुकालमें में हुआ है।
मोज़ेموزے
socks
Moze Chilghoze
शबनम रूमानी
बाल-साहित्य
Dilruba
क़ुर्रतुलऐन हैदर
उपन्यास
Char Novelt
Matalib Asrar-o-Rumuz
ग़ुलाम रसूल मेहर
व्याख्या
Mote Ram Shastri Aur Deegar Tanziya Afsane
प्रेमचंद
अफ़साना
Sudan Ki Mazedar Kahaniyan
मोहम्मद अमीन
Fehrist Nuskha-e-Hai Khatti Farsi
सय्यद आरिफ़ नवशाही
Azad Hindustan
भारत का इतिहास
Raahnuma-e-Mozah Aastaan-e-Quds-e-Rizvi
Andar Ek Aasman
Wasti, Junubi Africa Aur Malagasi Ki Mazedar Kahaniyan
Shumara Number-032
अननोन एडिटर
बुनियाद-ओ-गुसतरश मुज़ह दर ईरान
"लाहौल वला क़ुवः" मुट्ठी भींच कर मुंशी जी बोले, "मुवक्किल।" और फिर दाँत पीस कर बहुत ज़ोर लगाया मगर निहायत आहिस्ता से कि मुवक्किल जो बाहर खड़ा था वो सुन न ले, "मुवक्किल... लाहौल वला क़ुवः... कोई मुक़द्दमा न आएगा... ये वकालत हो रही है"? मुंशी जी ने हाथ से...
यानी अपने रूप का अंग जान कर जवानी के ज़हीन बादशाह ने सीना, दिल, आँखों और कूल्हों में बड़ा इज़ाफ़ा किया। देखा गया है कि जवानी का ज़हीन बादशाह बसा-औक़ात उन सनाइअ-बदाए के इस्तेमाल में फ़य्याज़ी से काम लेता है जिसके बाइस जमाल ख़ुद-रौ की क़ता-ओ-बुरीद लाज़िम आती है। शुक्र...
शराब पी कर आदमी अपना ग़म औरों को दे देता है मगर काफ़ी पीने वाले औरों के फ़र्ज़ी ग़म अपना लेते हैं। काफ़ी पी कर हलीफ़ भी हरीफ़ बन जाते हैं। यहां मुझे काफ़ी से अपनी बेज़ारी का इज़हार मक़सूद है, लेकिन अगर किसी साहिब को ये सुतूर शराब का...
सुबह ,शाम मदन ने तारों की डाक बिठा दी। काम पर उसने लात मार दी। एक प्रोडयूसर ने कोर्ट में ले जाने की धमकी दी तो वो नाक पर ढेर सा मरहम थोप कर पड़ गई। मैं भी मरहम की मिक़्दार देख कर हिल गई... गई नाक, मैंने सोचा। मगर...
“बेगम साहब आप जैसी बताओ वैसे करने से मोए ना थोरी, पर का करूँ का, रांड का टेंटवा दबाए दियों?” अम्माँ ने राय दी... “मोई को मैके फुंकवा दे।”...
मैं इतना बड़ा अदीब तो ख़ैर नहीं हूँ कि कभी किसी बैंक में क़दम ही न रख पाऊँ। मैं बैंक ज़रूर जाता हूँ। बैंक में मेरा खाता भी मौजूद है। मेरी तनख़्वाह चूँकि चैक से मिलती है। इसीलिए बैंक में खाता खोलना ज़रूरी था। ये और बात है कि मेरा...
“सारी दुनिया मौसम में इतनी शदीद दिलचस्पी क्यों लेती है। क्या इन लोगों को इस वक़्त गुफ़्तगू का कोई इससे ज़ियादा बेकार मौज़ू' नहीं सूझ रहा। क्वीनी लखनऊ रेडियो पर रोज़ाना आठ पचपन पर अंग्रेज़ी में मौसम की रिपोर्ट सुनाती थी। कल पच्छम में तेज़ हवा के साथ पानी आएगा।...
सात महीने तक सिगरेट और सोसाइटी से इज्तिनाब किया लेकिन ख़ुदा बड़ा मुसब्बिब उल असबाब है। आख़िर एक दिन जब वो वाज़ सुनकर ख़ुश ख़ुश घर लौट रहे थे तो उन्हें बस में एक सिगरेट लाइटर पड़ा मिल गया। चुनांचे पहले ही बस स्टॉप पर उतर पड़े और लपक कर...
गंडा सिंह को चुनांचे इसलिए भी अपना सूट अ’ज़ीज़ था कि अमृतसर में जब उसने अपना ये तारीख़ी सूट पहना था तो दरबार साहब के आस पास उसके जितने हाथी दांत का काम करने वाले दोस्त रहते थे मुतहय्यर हो गए थे। बलबीर ने जब उसे बाज़ार में देखा था...
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