aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
परिणाम "نا"
निदा फ़ाज़ली
1938 - 2016
शायर
मीना कुमारी नाज़
1933 - 1972
नाज़ ख़यालवी
1947 - 2010
नाज़ बट
नाज़ क़ादरी
1940 - 2019
लेखक
फरज़ाना नाज़
नाज़ मुरादाबादी
born.1936
मरयम नाज़
born.1988
शेर सिंह नाज़ देहलवी
1898 - 1962
नाज़ मुजफ़्फ़राबादी
born.1955
शाज़िया नाज़
born.1998
नईम नाज़
नाज़ वाई
शगुफ़्ता नाज़
नूर जहाँ नाज़
पहले से मरासिम न सही फिर भी कभी तोरस्म-ओ-रह-ए-दुनिया ही निभाने के लिए आ
उजाले अपनी यादों के हमारे साथ रहने दोन जाने किस गली में ज़िंदगी की शाम हो जाए
मुझ से पहली सी मोहब्बत मिरी महबूब न माँगमैं ने समझा था कि तू है तो दरख़्शाँ है हयात
ग़म-ए-दुनिया भी ग़म-ए-यार में शामिल कर लोनश्शा बढ़ता है शराबें जो शराबों में मिलें
जो गुज़ारी न जा सकी हम सेहम ने वो ज़िंदगी गुज़ारी है
महात्मा गांधी ऐसा नाम है जिसने कवियों और लेखकों पर अपनी एक अमिट छाप छोड़ी है। भारत के राष्ट्रपिता जिन्हें हम प्यार से बापू कहते हैं, भारतीय स्वतन्त्रता आंदोलन और अपने सत्य और अहिंसा के सिद्धांतों की बदौलत उर्दू कवियों पर भी गहरा असर छोड़ने में सफ़ल रहे हैं। महात्मा गांधी के सिद्धांतों और उनके उपदेशों का प्रवाह उर्दू शायरी में किस प्रकार है इसका अंदाज़ा आप नीचे दी गई कविताओं से लगा सकते हैं।
दो इन्सानों का बे-ग़रज़ लगाव एक अज़ीम रिश्ते की बुनियाद होता है जिसे दोस्ती कहते हैं। दोस्त का वक़्त पर काम आना, उसे अपना राज़दार बनाना और उसकी अच्छाइयों में भरोसा रखना वह ख़ूबियाँ हैं जिन्हें शायरों ने खुले मन से सराहा और अपनी शायरी का मौज़ू बनाया है। लेकिन कभी-कभी उसकी दग़ाबाज़ियाँ और दिल तोड़ने वाली हरकतें भी शायरी का विषय बनी है। दोस्ती शायरी के ये नमूने तो ऐसी ही कहानी सुनाते है।
मौत सब से बड़ी सच्चाई और सब से तल्ख़ हक़ीक़त है। इस के बारे मे इंसानी ज़हन हमेशा से सोचता रहा है, सवाल क़ाएम करता रहा है और इन सवालों के जवाब तलाश करता रहा है लेकिन ये एक ऐसा मुअम्मा है जो न समझ में आता है और न ही हल होता है। शायरों और तख़्लीक़-कारों ने मौत और उस के इर्द-गिर्द फैले हुए ग़ुबार में सब से ज़्यादा हाथ पैर मारे हैं लेकिन हासिल एक बे-अनन्त उदासी और मायूसी है। यहाँ मौत पर कुछ ऐसे ही खूबसूरत शेर आप के लिए पेश हैं।
नنہ
no, not
नुहنہ
nine
नाنا
Urdu Ka Ibtedai Zamana
शम्सुर रहमान फ़ारूक़ी
आलोचना
Agar Ab Bhi Na Jage To
शम्श नवेद उसमानी
अनुवाद
Dastak Na Do
अल्ताफ़ फ़ातिमा
ऐतिहासिक
Ajaibaat-e-Farang
यूसुफ़ खां कम्बल पोश
सफ़र-नामा / यात्रा-वृतांत
Phool Dekhe Na Gaye
पुरनम इलाहाबादी
काव्य संग्रह
Mushahidat
होश बिलग्रामी
आत्मकथा
Dilruba
क़ुर्रतुलऐन हैदर
उपन्यास
Abul Kalam Ke Afsane
अबुल कलाम आज़ाद
कि़स्सा / दास्तान
Manto: Noori Na Naari
मुमताज़ शीरीं
जीवनी
Ghazal Baha Na Karun
अहमद फ़राज़
Rah Gai Rasm-e-Azan Rooh-e-Bilali Na Rahi
मोहम्मद बदीउज़्ज़माँ
Char Novelt
Amraz-e-Niswan
हकीम वसीम अहमद आज़मी
औषधि
Be Zabani Zaban Na Ho Jaye
फ़रान सय्यद
उठा कर क्यों न फेंकें सारी चीज़ेंफ़क़त कमरों में टहला क्यों करें हम
वो जो न आने वाला है ना उस से मुझ को मतलब थाआने वालों से क्या मतलब आते हैं आते होंगे
न जी भर के देखा न कुछ बात कीबड़ी आरज़ू थी मुलाक़ात की
न ये कि हुस्न-ए-ताम होन देखने में आम सी
इस सादगी पे कौन न मर जाए ऐ ख़ुदालड़ते हैं और हाथ में तलवार भी नहीं
एक मुद्दत से तिरी याद भी आई न हमेंऔर हम भूल गए हों तुझे ऐसा भी नहीं
क़नाअत न कर आलम-ए-रंग-ओ-बू परचमन और भी आशियाँ और भी हैं
क्यूँ न चीख़ूँ कि याद करते हैंमेरी आवाज़ गर नहीं आती
हम ने माना कि तग़ाफ़ुल न करोगे लेकिनख़ाक हो जाएँगे हम तुम को ख़बर होते तक
इस से पहले कि बे-वफ़ा हो जाएँक्यूँ न ऐ दोस्त हम जुदा हो जाएँ
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