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नज़्म
शिकवा
आए उश्शाक़ गए वादा-ए-फ़र्दा ले कर
अब उन्हें ढूँड चराग़-ए-रुख़-ए-ज़ेबा ले कर
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
रक़ीब से!
आग सी सीने में रह रह के उबलती है न पूछ
अपने दिल पर मुझे क़ाबू ही नहीं रहता है
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
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ग़ज़ल
या वो थे ख़फ़ा हम से या हम हैं ख़फ़ा उन से
कल उन का ज़माना था आज अपना ज़माना है
जिगर मुरादाबादी
ग़ज़ल
तहज़ीब हाफ़ी
नज़्म
निसार मैं तेरी गलियों के
यूँही हमेशा खिलाए हैं हम ने आग में फूल
न उन की हार नई है न अपनी जीत नई