aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
परिणाम "ओख"
क़मर जलालाबादी
1917 - 2003
शायर
ओम भुतकर मग़्लूब
born.1991
ओम कृष्ण राहत
born.1925
शिव ओम मिश्रा अनवर
born.1972
ओम अवस्थी
born.1996
ओम प्रकाश लाग़र
born.1924
ओम प्रकाश बजाज
born.1922
ओम प्रभाकर
born.1941
इदारा तालीफ़-ओ-तर्जुमा जामिआ पंजाब, लाहौर
पर्काशक
ओम राज़
नाज़िर दावत-ओ-तब्लीग़, सदर अंजुमन अहमदिया, पंजाब
इदारा-ए-तस्नीफ़-ओ-तालीफ़-ओ-तर्जुमा, कराची
ओम प्रकाश अग्रवाल ज़ार अल्लामी
1923 - 1998
लेखक
मरकज़ तहक़ीक़ात फ़ार्सी ईरान-ओ-पाकिस्तान
नज़ारत तालीफ़-ओ-तसनीफ़ जमाअत-ए-अहमदया
सुना है उस को भी है शेर ओ शाइरी से शग़फ़सो हम भी मो'जिज़े अपने हुनर के देखते हैं
पहले से मरासिम न सही फिर भी कभी तोरस्म-ओ-रह-ए-दुनिया ही निभाने के लिए आ
ऐ मिरे सुब्ह-ओ-शाम-ए-दिल की शफ़क़तू नहाती है अब भी बान में क्या
रेशम ओ अतलस ओ कमख़ाब में बुनवाए हुएजा-ब-जा बिकते हुए कूचा-ओ-बाज़ार में जिस्म
वीराँ है मय-कदा ख़ुम-ओ-साग़र उदास हैंतुम क्या गए कि रूठ गए दिन बहार के
रूमान और इश्क़ के बग़ैर ज़िंदगी कितनी ख़ाली ख़ाली सी होती है इस का अंदाज़ा तो आप सबको होगा ही। इश्क़चाहे काइनात के हरे-भरे ख़ूबसूरत मनाज़िर का हो या इन्सानों के दर्मियान नाज़ुक ओ पेचीदा रिश्तों का इसी से ज़िंदगी की रौनक़ मरबूत है। हम सब ज़िंदगी की सफ़्फ़ाक सूरतों से बच निकलने के लिए मोहब्बत भरे लम्हों की तलाश में रहते हैं। तो आइए हमारा ये शेरी इन्तिख़ाब एक ऐसा निगार-ख़ाना है जहाँ हर तरफ़ मोहब्बत , लव, इश्क़ , बिखरा पड़ा है।
२०२२ ख़त्म हुआ आप लोगों ने उर्दू ज़बान-ओ -अदब और शाइरी से भरपूर मुहब्बत का इज़हार किया है । इस कलेक्शन में हम उन 10 नज़्मों को पेश कर रहे हैं जो रेख़्ता पर सबसे ज़्यादा पढ़ी गईं हैं।
ओखاوکھ
sugar cane
उर्दू इमला और रस्म-उल-ख़त
फ़रमान फ़तेहपुरी
भाषा
उर्दू नॉवेल आग़ाज़-ओ-इर्तेक़ा
अज़ीमुश्शान सिद्दीक़ी
फ़िक्शन तन्क़ीद
रुस्तम-ओ-सोहराब
आग़ा हश्र काश्मीरी
ऐतिहासिक
उर्दू दरस-ओ-तदरीस
अज़ीज़ुल्लाह शीरानी
एजुकेशन / शिक्षण
जुर्म-ओ-सज़ा
फ़्योदोर दोस्तोयेव्स्की
नॉवेल / उपन्यास
उर्दू इमला-ओ-क़वाइद
उर्दू इम्ला-ओ-रुमूज़-ए-औक़ाफ़
गौहर नौशाही
अकबर इलाहाबादी
ख़्वाजा मोहम्मद ज़करिय़ा
आलोचना
अल्लामा इक़बाल : हयात,फ़िक्र-ओ-फ़न
सलीम अख़्तर
उर्दू ख़ुद नविशत फ़न-ओ-तजज़िया
वहाजुद्दीन अलवी
मिर्ज़ा फ़रहतुल्लाह बैग
अब्दुल हई सिद्दीक़ी
मंटो का सरमाया-ए-फ़िक्र-ओ-फ़न
निगार अज़ीम
मवाज़ना-ए-अनीस-ओ-दबीर
शिबली नोमानी
हाफ़िज़ महमूद शीरानी और उनकी इल्मी-ओ-अदबी ख़िदमात
मज़हर महमूद शीरानी
तहक़ीक़-ओ-तंक़ीद
यूसुफ़ सरमस्त
(2)पूस की अँधेरी रात। आसमान पर तारे भी ठिठुरते हुए मालूम होते थे। हल्कू अपने खेत के किनारे ओख के पत्तों की एक छतरी के नीचे बाँस के खटोले पर अपनी पुरानी गाढे़ की चादर ओढ़े हुए काँप रहा था। खटोले के नीचे उसका साथी कुत्ता, जबरा पेट में मुँह डाले सर्दी से कूँ कूँ कर रहा था। दो में से एक को भी नींद न आती थी।
ये परी-चेहरा लोग कैसे हैंग़म्ज़ा ओ इश्वा ओ अदा क्या है
आज उसने कल का रास्ता छोड़ दिया और खेतों की मेंडों से होती हुई चली। बार-बार ख़ाइफ़ नज़रों से इधर-उधर ताकती जाती थी। दोनों तरफ़ ऊख के खेत खड़े थे। ज़रा भी खड़खड़ाहट होती तो उसका जी सन्न से हो जाता। कोई ऊख में छुपा बैठा न हो। मगर कोई नई बात न हुई। ओख के खेत निकल गए। आमों का बाग़ निकल गया, सींचे हुए खेत नज़र आने लगे। दूर एक कुँए पर पुर चल रहा था। खेतों की मेंडो...
न मुद्दतों जुदा रहेन साथ सुब्ह-ओ-शाम हो
झेबी जानता था कि सांवल ग़ुस्सैल आदमी है, इसलिए वो किसी तरह बात काट कर निकल जाना चाहता था, वो ख़ूब अच्छी तरह जानता था कि फागू के बाप पर जो इल्ज़ाम रख रहा था, वो भी ग़लत था, वो ये भी जानता था कि गाँव में किसी ने कुछ उसका बिगाड़ा नहीं था और वो सिर्फ़ अपने फ़ायदे के लिए गाँव भर के आदमियों को नुक़्सान पहुँचा रहा था। और पटवारी तक ख़बर पहुँचाने के बा’द गाँव ...
भरम खुल जाए ज़ालिम तेरे क़ामत की दराज़ी काअगर इस तुर्रा-ए-पुर-पेच-ओ-ख़म का पेच-ओ-ख़म निकले
क़नाअत न कर आलम-ए-रंग-ओ-बू परचमन और भी आशियाँ और भी हैं
जानता हूँ सवाब-ए-ताअत-ओ-ज़ोहदपर तबीअत इधर नहीं आती
बा-हज़ाराँ इज़्तिराब ओ सद-हज़ाराँ इश्तियाक़तुझ से वो पहले-पहल दिल का लगाना याद है
सब से नज़र बचा के वो मुझ को कुछ ऐसे देखताएक दफ़'अ तो रुक गई गर्दिश-ए-माह-ओ-साल भी
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