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ग़ज़ल
तुम जो सोचो वो तुम जानो हम तो अपनी कहते हैं
देर न करना घर आने में वर्ना घर खो जाएँगे
निदा फ़ाज़ली
मर्सिया
जान-ए-फ़ुसहा रूह-ए-फ़साहत है तो ये है
हर कलिमा है मौक़े पे बलाग़त है तो ये है