aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
1835 - 1892 | इलाहाबाद, भारत
अकबर इलाहाबादी के समकालीन , अपने शेर "आगाह अपनी मौत से कोई ......." के लिए प्रसिद्ध
अपना ही हाल तक न खुला मुझ को ता-ब-मर्ग
मैं कौन हूँ कहाँ से चला था कहाँ गया
आगाह अपनी मौत से कोई बशर नहीं
सामान सौ बरस का है पल की ख़बर नहीं
कहा आशिक़ से वाक़िफ़ हो तो फ़रमाया नहीं वाक़िफ़
मगर हाँ इस तरफ़ से एक ना-महरम निकलता है
न तो कुछ फ़िक्र में हासिल है न तदबीर में है
वही होता है जो इंसान की तक़दीर में है
Aag Khoon Pani
1998
Intikhab-e-Kalam Hairat Allahabadi
1997
कशकोल-ए-वफ़ा
1989
Kulliyat-e-Hairat
1892
Patte Kante Phool
1996
आगाह अपनी मौत से कोई बशर नहीं सामान सौ बरस का है पल की ख़बर नहीं
न तो कुछ फ़िक्र में हासिल है न तदबीर में है वही होता है जो इंसान की तक़दीर में है
You have exhausted 5 free content pages per year. Register and enjoy UNLIMITED access to the whole universe of Urdu Poetry, Rare Books, Language Learning, Sufi Mysticism, and more.
Jashn-e-Rekhta | 13-14-15 December 2024 - Jawaharlal Nehru Stadium , Gate No. 1, New Delhi
Devoted to the preservation & promotion of Urdu
A Trilingual Treasure of Urdu Words
Online Treasure of Sufi and Sant Poetry
World of Hindi language and literature
The best way to learn Urdu online
Best of Urdu & Hindi Books