aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
परिणाम "जो"
जाँ निसार अख़्तर
1914 - 1976
शायर
जोश मलीहाबादी
1898 - 1982
ए जी जोश
1928 - 2007
जोश मलसियानी
1884 - 1976
बहराम जी
1828 - 1895
अहसन यूसुफ़ ज़ई
अमन जी मिश्रा
born.2001
सय्यद मुहीउद्दीन क़ादरी ज़ोर
1905 - 1965
लेखक
अनंत शहरग
born.1999
सुल्तान हैदर जोश
1886 - 1953
जे ई नज्म
born.1985
जी आर वशिष्ठ
born.1996
जे. पी. सईद
born.1932
साइम जी
born.1983
याह्या ख़ान यूसुफ़ ज़ई
born.1981
सुना है आइना तिमसाल है जबीं उस कीजो सादा दिल हैं उसे बन-सँवर के देखते हैं
यूँ जो तकता है आसमान को तूकोई रहता है आसमान में क्या
तेरी आँखों के सिवा दुनिया में रक्खा क्या हैतू जो मिल जाए तो तक़दीर निगूँ हो जाए
ग़म-ए-दुनिया भी ग़म-ए-यार में शामिल कर लोनश्शा बढ़ता है शराबें जो शराबों में मिलें
महबूब का घर हो कि बुज़ुर्गों की ज़मीनेंजो छोड़ दिया फिर उसे मुड़ कर नहीं देखा
रेख़्ता ने अपने पाठकों के अनुभव से, प्राचीन और आधुनिक कवियों की उन पुस्तकों का चयन किया है जो सबसे अधिक पढ़ी जाती हैं.
कई दशक बीत गए लेकिन भारतीय गायकी के महानायक मोहम्मद रफी आज भी अपनी आवाज़ के जादू से सभी के दिलों पर राज कर रहे हैं। उनके रूमानी और भक्ति गीतों की गूँज आज भी सुनाई देती है। यहाँ हम उन मशहूर उर्दू शायरों की ग़ज़लें लेकर आए हैं, जिन्हें मुहम्मद रफ़ी ने गाया था। उन्होंने उन ग़ज़लों की ख़ूसूरती में वो जादू भर दिया है जो सुनने वालों को देर तक मंत्रमुग्ध रखता है।
ख़ुदा-ए-सुख़न कहे जाने वाले मीर तक़ी मीर उर्दू अदब का वो रौशन सितारा हैं, जिन्होंने नस्ल-दर-नस्ल शायरों को मुतास्सिर किया. यहाँ उनकी ज़मीन पर लिखी गई चन्द ग़ज़लें दी जा रही हैं, जो मुख़्तलिफ़ शायरों ने उन्हें खिराज पेश करते हुए कही.
''जोجو
who, which
जोجو
who/ that/ if
वो जो शाइरी का सबब हुआ
कलीम आजिज़
काव्य संग्रह
एक भाषा जो मुसतर्द कर दी गई
मिर्ज़ा ख़लील अहमद बेग
भाषा विज्ञान
जो कहानियाँ लिखें
असद मोहम्मद ख़ाँ
अफ़साना
दिल्ली जो इक शहर था
डॉ. अब्दुस्सत्तार
लेख
Yadon Ki Barat
आत्मकथा
जंग और अम्न
लेव तालस्तोय
नॉवेल / उपन्यास
हमारी आज़ादी
अबुल कलाम आज़ाद
राजनीतिक आंदोलन
हिंदुस्तान की जंग-ए-आज़ादी में मुसलमानों का हिस्सा
मुहम्मद मुज़फ़्फ़रुद्दीन फ़ारूक़ी
भारत का इतिहास
Hindustani Lisaniyat
आलोचना
ज़ेर-ए-लब
सफ़िया अख़्तर
इतिहास एवं समीक्षा
मीरा जी एक मुताला
जमील जालिबी
शायरी तन्क़ीद
Urdu Shaeri Mein Sanaae-o-Badaae
रहमत यूसुफ़ ज़ई
Deccani Adab Ki Tareekh
इतिहास
कुल्लियात-ए-मीरा जी
कुल्लियात
जो औरत नंगी है
राम लाल
जो गुज़ारी न जा सकी हम सेहम ने वो ज़िंदगी गुज़ारी है
किया था अह्द जब लम्हों में हम नेतो सारी उम्र ईफ़ा क्यूँ करें हम
कितने ऐश से रहते होंगे कितने इतराते होंगेजाने कैसे लोग वो होंगे जो उस को भाते होंगे
जब कि तुझ बिन नहीं कोई मौजूदफिर ये हंगामा ऐ ख़ुदा क्या है
न इस क़दर सुपुर्दगीकि ज़च करें नवाज़िशें
जो इश्क़ को काम समझते थेया काम से आशिक़ी करते थे
डरे क्यूँ मेरा क़ातिल क्या रहेगा उस की गर्दन परवो ख़ूँ जो चश्म-ए-तर से उम्र भर यूँ दम-ब-दम निकले
यूँ तो हर शाम उमीदों में गुज़र जाती हैआज कुछ बात है जो शाम पे रोना आया
है कुछ ऐसी ही बात जो चुप हूँवर्ना क्या बात कर नहीं आती
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