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ग़ज़ल
मेरी कोशिश है कि दुनिया को बना दूँ फ़िरदौस
और दुनिया मुझे नाकारों में गर्दान्ती है
मुज़फ़्फ़र हनफ़ी
नज़्म
शिकवा
तान-ए-अग़्यार है रुस्वाई है नादारी है
क्या तिरे नाम पे मरने का एवज़ ख़्वारी है
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
जवाब-ए-शिकवा
नाज़ है ताक़त-ए-गुफ़्तार पे इंसानों को
बात करने का सलीक़ा नहीं नादानों को
अल्लामा इक़बाल
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नज़्म
आवारा
शहर की रात और मैं नाशाद ओ नाकारा फिरूँ
जगमगाती जागती सड़कों पे आवारा फिरूँ
असरार-उल-हक़ मजाज़
ग़ज़ल
रहा करते हैं क़ैद-ए-होश में ऐ वाए-नाकामी
वो दश्त-ए-ख़ुद-फ़रामोशी के चक्कर याद आते हैं
हसरत मोहानी
ग़ज़ल
नाकाम-ए-तमन्ना दिल इस सोच में रहता है
यूँ होता तो क्या होता यूँ होता तो क्या होता