aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
परिणाम "फाटक"
सलाहुद्दीन फ़ाइक़ बुरहानपुरी
लेखक
कल्ब अली ख़ाँ फ़ाएक़
1909 - 1988
फ़ाइक़ रज़ा अंसारी
संपादक
मोहम्मद फ़ाइक़ हनफ़ी
पर्काशक
फाएक किरतपुरी
सय्यद मुहम्मद फ़ाइक निज़ामी नियाज़ी
सय्यद औलाद हैदर फ़ाैक़
सय्यद मोहम्मद फ़ाइक़ वास्ती
मत्बा फाैक़ काशी, दिल्ली
सय्यद ताहा फ़ाइक़ हुसैन
क़ाज़ी नूरुद्दीन फ़ाइक़
born.1870
मोहम्मद फ़ाइक़
फ़ाैक़ देहलवी
नसीम फ़ाइक़
शायर
फ़ाैक़ सबज़वारी
1904 - 1953
रावी: यादगार-ए-ग़ालिब में हाली लिखते हैं, “मरने से कई बरस पहले चलना फिरना मौक़ूफ़ हो गया था। अक्सर औक़ात पलंग पर पड़े रहते थे। ग़िज़ा कुछ ना रही थी। 1866 ई. में ख़्वाजा अज़ीज़ लखनवी लखनऊ से कश्मीर जाते वक़्त रास्ते में ग़ालिब से मिले थे, मिर्ज़ा साहिब के पुख़्ता...
‘‘जा रही हो पिरोजा? ठहरो मेरी कार तुमको पहुंचा आएगी...ड्राईव...!’’अल्मास ने सुकून के साथ आवाज़ दी। ‘‘नहीं अल्मास शुक्रिया’’, वो तक़रीबन भागती हुई फाटक से निकली...सड़क से दूसरी तरफ़ उसी वक़्त बस आन कर रुकी, वो तेज़ी से सड़क पार कर के बस में सवार हो गई।...
शरीफ़ हुसैन क्लर्क दर्जा दोम, मामूल से कुछ सवेरे दफ़्तर से निकला और उस बड़े फाटक के बाहर आ कर खड़ा हो गया जहाँ से ताँगे वाले शहर की सवारियाँ ले जाया करते थे। घर लौटते हुए आधे रास्ते तक ताँगे में सवार हो कर जाना एक ऐसा लुत्फ़ था...
(3) “हाहाहा, मेरा प्यार मीर मेहदी आया, ग़ज़लों का पुश्तारा लाया। अरे मियां बैठो, शे’र-ओ-शायरी का क्या ज़िक्र है, यहां तो मकान की फ़िक्र है। ये मकान चार रुपये महीने का हर-चंद कि ढब का न था लेकिन अच्छा था। शरीफ़ों का मुहल्ला है। पहले मालिक ने बेच दिया। नया...
मुझे वो वक़्त अच्छी तरह याद है जैसे कल की बात हो। सुब्ह के दस ग्यारह बजे होंगे। रेलवे स्टेशन से लड़कियों के ताँगे आ आकर फाटक में दाख़िल हो रहे थे। होस्टल के लॉन पर बरगद के दरख़्त के नीचे लड़कियाँ अपना-अपना अस्बाब उतरवा कर रखवा रही थीं। बड़ी...
फाटकپھاٹک
door, gate
Mughal Shahzadiyan : Ilmi-o-Adabi Khidmaat
Momin
Uswatur Rasool
Tareekh-e-Jadeed Suba Odisha Wa Bihaar
भारत का इतिहास
Durr-e-Maqsood
जीवनी
मेरा लहजा
Insha-e-Faiq
मुंशी नवल किशोर के प्रकाशन
Saheefatul Abideen
तज़्किरा-ए-शोअरा-ए-गुजरात
तज़्किरा / संस्मरण / जीवनी
Maasirul Baqarya
Intikhab-e-Faiq
संकलन
Uloom-e-Kazmiya
इस्लामियात
Tahqiqul-Faiq Fi Taqleedil-Khalaiq
Tazkira Makhzan-ush-Shora
Makhzan-ul-Fawaid
हबीब बिन तिरमिज़ी फिर रोया और कहा कि ख़ुदा की क़सम ये ज़र-ओ-सीम सय्यद रज़ी, अबु जा’फ़र शीराज़ी, अबु मुस्लिम बग़्दादी, शेख़ हमज़ा और मेरे दरमियान मुसावी तक़सीम होता है और अपना हिस्सा मसाकीन में तक़सीम कर देता हूँ और बोरिया को अपनी तक़दीरजानता हूँ। मैं वहां से उठ के...
ग़ालिब और रिज़वान पस-ए-मंज़र: एक बहुत बड़ा सफ़ेद फाटक है जो नक़्श-ओ-निगार से बिल्कुल मुअर्रा है, सिर्फ़ उसके ऊपर जगमगाते हुए तारों में “दार अस्सलाम” लिखा हुआ है। फाटक के क़रीब एक नूरानी सूरत बुज़ुर्ग तस्बीह लिए मुसल्ले पर बैठे हुए हैं। एक जरीब ज़ैतूनी बाएं तरफ़ रखी हुई है।...
कुछ तो इदरीस दबा खा कर सज्जाद का हौसला बढ़ा गया, कुछ सरताज का रवैय्या खुर्दों का सा था। हर काम में वो सज्जाद से मश्वरा लेती, हर मुआमले में उसकी राय मालूम करती। इस रवैय्ये ने सज्जाद में एक दर्जा ख़ुद-एतिमादी पैदा कर दी थी। अगर इदरीस का वाक़िया...
“एक्सक्यूज़ मी।”, तमारा ने नर्मी से कहा और हाथ छुड़ा कर भागती हुई एक बस में सवार हो गई चारों तरफ़ देखा। शायद उस बस में नुसरत मौजूद हो। ये उसके होस्टल की तरफ़ जाती है। नंबर पढ़ लिया था। एक दफ़ा’ नुसरत मिल जाए फिर सब ठीक हो जाएगा।...
"अभी आई बेगम साहिब!" थोड़ी देर बाद वो आँचल से सीने को ढाँपती, लहंगा हिलाती, बँगले का फाटक खोल अंदर आई। जग्गू उसके पीछे पीछे थी। दोनों माँ-बेटीयों के कपड़े मैले चिकट हो रहे थे। दोनों ने सर में सरसों का तेल ख़ूब लीसा हुआ था।...
लहू की शायरी मेरा काम है कुएं के क़रीब कोई मुतनफ़्फ़िस मौजूद न था। मेरे सामने छोटे फाटक की साथ वाली दीवार पर गोलियों के निशान थे। चौकोर जाली मंधी हुई थी। मैं इन निशानों को बीसियों मर्तबा देख चुका था। मगर अब वो निशान जो मेरी निगाहों के ऐ’न...
नज़ीर ब्लैक मार्कीट से विस्की की बोतल लाने गया। बड़े डाकख़ाने से कुछ आगे बंदरगाह के फाटक से कुछ उधर सिगरेट वाले की दुकान से उसको स्काच मुनासिब दामों पर मिल जाती थी। जब उसने पैंतीस रुपये अदा करके काग़ज़ में लिपटी हुई बोतल ली तो उस वक़्त ग्यारह बजे...
एक दिन सै पहर को मैं और मदन साहब ज़ादा साहब की हवेली के बाहर सड़क पर गेंद से खेल रहे थे कि हमें एक अजीब सी वज़ा का बूढ़ा आदमी आता दिखाई दिया। उसने महाजनों के अंदाज़ में धोती बाँध रखी थी। माथे पर सिंदूर का टीका था। कानों...
आप असदुल्लाह ख़ां ग़ालिब साकिन हब्श ख़ां का फाटक को क़िमारबाज़ी की इल्लत में छः माह क़ैद बामशक़्क़त और दो सौ रुपया जुर्माना... जुर्माना की रक़म दाख़िल सरकार न की गई तो मज़ीद छः माह की क़ैद भुगतना पड़ेगी। अलबत्ता इतनी रिआयत की जाती है कि अगर पच्चास रुपये ज़्यादा...
पर जब बेटे-बेटियाँ, बहुएँ-दामाद, पोते-पोतियाँ, नवासे-नवासियाँ पूरा का पूरा क़ाफ़िला बड़े फाटक से निकल कर पुलिस की निगरानी में लारियों में सवार होने लगा तो उनके कलेजे के टुकड़े उड़ने लगे। बेचैन नज़रों से उन्होंने ख़लीज के उस पार बेकसी से देखा। सड़क बीच का घर इतना दूर लगा जैसे...
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