aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
परिणाम "बाने"
राजेन्द्र मनचंदा बानी
1932 - 1981
शायर
अज़ीज़ बानो दाराब वफ़ा
1926 - 2005
बानो कुदसिया
1928 - 2017
लेखक
जिलानी बानो
born.1936
सय्यदा नफ़ीस बानो शम्अ
born.1957
बानो साइमा
शकीला बानो भोपाली
1942 - 2002
हिजाब अब्बासी
रिज़्वाना बानो इक़रा
born.1988
शाहजहाँ बानो याद
born.1937
काज़मी बानो ज़िया
इफ़्फ़त ज़ेबा काकोरवी
1924 - 2002
बानो सरताज
born.1945
अर्जुमंद बानो अफ़्शाँ
born.1962
सबा मुम्ताज़ बानो
born.1985
उस की याद की बाद-ए-सबा में और तो क्या होता होगायूँही मेरे बाल हैं बिखरे और बिखर जाते होंगे
तेरे सब रंग हयूले के ये बे-जान नुक़ूशजैसे मरबूत ख़यालात के ताने-बाने
जीवना बाई की साड़ी जो शांता बाई की साड़ी के साथ लटक रही है, गहरे भूरे रंग की है। ब-ज़ाहिर उसका रंग शांता बाई की साड़ी से भी फीका नज़र आएगा लेकिन अगर आप ग़ौर से देखें तो उस फीके पन के बावुजूद ये आप को गहरे भूरे रंग की...
और कशिश के ताने-बाने टूट चले हैंकौन तमाशाई है? मैं हू... और तमाशा
पहले दिन जब उसने वक़ार को देखा तो वो उसे देखती ही रह गई थी। अस्मा की पार्टी में किसी ने उसे मिलवाया था, “इनसे मिलो ये वक़ार हैं।” वक़ार उसके लिए मुकम्मल अजनबी था मगर उस अजनबी-पन में एक अजीब सी जान-पहचान थी। जैसे बरसों या शायद सदियों के...
औरत को मौज़ू बनाने वाली शायरी औरत के हुस्न, उस की सिन्फ़ी ख़ुसूसियात, उस के तईं इख़्तियार किए जाने वाले मर्द असास समाज के रवय्यों और दीगर बहुत से पहलुओं का अहाता करती है। औरत की इस कथा के मुख़्तलिफ़ रंगों को हमारे इस इन्तिख़ाब में देखिए।
कर्बला की घटनाओं और इमाम हुसैन की शहादत के बारे में उर्दू में बहुत कुछ लिखा गया है। कभी इतिहास के रूप में, कभी शोक और मर्सिया के रूप में, कभी कल्पना और कहानी के रूप में, अर्थात् असत्य पर सत्य की जीत की इस कहानी ने उर्दू साहित्य के क्षितिज को व्यापक बनाया है। ऐसी सभी पुस्तकें रेख़्ता के "वाकियाता-ऐ-कर्बला" संग्रह में मौजूद हैं।अवश्य पढ़ें।
ग़ज़ल एक अरबी शब्द है जिसका अर्थ है "महबूबसे बातें करना"। इस्तिलाः में ग़ज़ल शाइरी की उस सिन्फ़ को कहते हैं जिस में बह्र, क़ाफ़िया,और रदीफ़, की रिआयत की जाए। ग़ज़ल के पहले शेर को 'मतला' और आख़िरी शेर जिस में शायर अपना तख़ल्लुस इस्तिमाल करता है 'मक़्ता' कहते हैं।
बानेبانے
warp and weft
बयान-ए-ग़ालिब
आग़ा मोहम्मद बाक़र
व्याख्या
रास्ता बन्द है
कहानियाँ
Raja Gidh
उपन्यास
Adab Kya Hai ?
नूरुल हसन हाशमी
मज़ामीन / लेख
मतालिब-ए-बाल-ए-जिबरील
ग़ुलाम रसूल मेहर
Urdu Inshaiya Aur Beeswin Sadi Ke Aham Inshaiya Nigar
हाजरा बानो
आलोचना
Bachon Ke Liye Yakbabi Drame
ड्रामा/ नाटक
Aiwan-e-Ghazal
फ़िक्शन
अमर बेल
अफ़साना
Gernaili Sadak
रज़ा अली आबिदी
सफ़र-नामा / यात्रा-वृतांत
हासिल घाट
महिलाओं की रचनाएँ
कबीर बानी
अली सरदार जाफ़री
अनुवाद
Tooba
शाह बलीग़ुद्दीन
बातें
Mard-e-Abresham
कुतुब ख़ाना
शादी से पहले मौलवी अबुल के बड़े ठाठ थे। खद्दर या लट्ठे की तहबंद की जगह गुलाबी रंग की सब्ज़ धारियों वाली रेशमी ख़ोशाबी लुंगी, दो घोड़ा बोस्की की क़मीज़, जिसकी आस्तीनों की चुन्नटों का शुमार सैंकड़ों में पहुँचता था। ऊदे रंग की मख़्मल की वास्कट जिसकी एक जेब में...
माई जीवां ये आग कई मर्तबा सुलगा चुकी है। ये तकिया या छोटी सी ख़ानक़ाह जिसके अंदर बनी हुई क़ब्र की बाबत उसके परदादा ने लोगों को ये यक़ीन दिलाया था कि वो एक बहुत बड़े पीर की आरामगाह है, एक ज़माने से उनके क़ब्ज़े में थी। गामा साईं के...
मग़्रिब में फेमीनिज़्म दर हक़ीक़त एक समाजी, सियासी और मआ'शी तहरीक थी जिसकी बानी-व-मोहर्रिक व हर अव्वल अह्ल-ए-क़लम ख़वातीन बहनें थीं। मेरे नज़्दीक feminism निसाइयत का मुतबादिल नहीं। निसाइयत और निसवानियत feminity का मुतरादिफ़-व-मुतबादिल हो सकती है, feminism का हरगिज़ नहीं। female feminine शायरी और अदब का अपना मक़ाम है।...
सुब्ह का वक़्त था। ठाकुर दर्शन सिंह के घर में एक हंगामा बरपा था। आज रात को चन्द्र गरहन होने वाला था। ठाकुर साहब अपनी बूढ़ी ठकुराइन के साथ गंगा जी जाते थे। इसलिए सारा घर उनकी पुरशोर तैयारी में मसरूफ़ था। एक बहू उनका फटा हुआ कुरता टांक रही...
“नमस्ते मामा...अभी किताबें लाती हूँ बस ज़रा मुँह हाथ धो आऊँ...” “चल चुड़ैल... बहाने-बाज़... सबक़ सुना पहले…”, डॉक्टर आफ़ताब राय ने प्यार से कहा (लेकिन ये कुछ तजुर्बा उन्हें था कि अपने से कम-उ'म्र लोगों से और कुन्बे बिरादरी वालों से ये घर गृहस्ती और लाड प्यार के मकालमे वो...
आख़िर शब का गिर्याउस के ताने-बाने का हिस्सा है
मजबूरी सब को होती हैमिलना हो तो लाख बहाने
बस वो उन्ही से फ़ितरत को ख़ालों के लिबास पहनाता हैशाइ'र के पल्ले क्या है गीतों के ताने-बाने हैं
उसको देख कर इसके सिवा कोई और ख़याल दिमाग़ में आ ही नहीं सकता था कि वो भोली है, बहुत ही भोली और जिन रूमानों के पस-ए-मंज़र के साथ वो पेश होती, उनके ताने-बाने यूं मालूम होते थे कि किसी जोलाहे की अल्हड़ लड़की ने तैयार किए हैं। वो जब...
उन की हस्ती का पैराहनमेरी साँस के ताने-बाने
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