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मर्सिया
बीनी के तो मज़मूँ पे ये दावा है यक़ीनी
इस नज़्म के चेहरे की वो हो जाएगा बीनी
मिर्ज़ा सलामत अली दबीर
ग़ज़ल
हुस्न-ए-बे-परवा को ख़ुद-बीन ओ ख़ुद-आरा कर दिया
क्या किया मैं ने कि इज़हार-ए-तमन्ना कर दिया
हसरत मोहानी
ग़ज़ल
सारे सपेरे वीरानों में घूम रहे हैं बीन लिए
आबादी में रहने वाले साँप बड़े ज़हरीले थे
ग़ुलाम मोहम्मद क़ासिर
मर्सिया
ये तन-बदन का दाग़ है वो इक जिगर का दाग़
पैदा हुआ पिसर तो मिटा इस पिसर का दाग़