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नज़्म
जवाब-ए-शिकवा
उम्मतें गुलशन-ए-हस्ती में समर-चीदा भी हैं
और महरूम-ए-समर भी हैं ख़िज़ाँ-दीदा भी हैं
अल्लामा इक़बाल
शेर
हज़ारों साल नर्गिस अपनी बे-नूरी पे रोती है
बड़ी मुश्किल से होता है चमन में दीदा-वर पैदा
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
सुब्ह-ए-आज़ादी (अगस्त-47)
अभी गिरानी-ए-शब में कमी नहीं आई
नजात-ए-दीदा-ओ-दिल की घड़ी नहीं आई
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
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नज़्म
दरख़्त-ए-ज़र्द
वो दोशीज़ा भी शायद दास्तानों की हो दिल-दादा
उसे मालूम होगा 'ज़ाल' था 'सोहराब' का दादा
जौन एलिया
ग़ज़ल
बस-कि हूँ 'ग़ालिब' असीरी में भी आतिश ज़ेर-ए-पा
मू-ए-आतिश दीदा है हल्क़ा मिरी ज़ंजीर का
मिर्ज़ा ग़ालिब
नज़्म
तुलू-ए-इस्लाम
हज़ारों साल नर्गिस अपनी बे-नूरी पे रोती है
बड़ी मुश्किल से होता है चमन में दीदा-वर पैदा
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
ए'तिराफ़
दर्द जब दर्द न हो काविश-ए-दरमाँ मालूम
ख़ाक थे दीदा-ए-बेबाक में गर्दूं के नुजूम