aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
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आह संभली
लेखक
अंकित आब
born.1984
शायर
सफ़दर आह सीतापुरी
1903 - 1980
रजत गुप्ता अहद
1993 - 2020
मतबा अहल-ए-सुन्नत व जमाअत, बरैली
पर्काशक
मतबा अहल-ए-सुन्नत बर्क़ी प्रेस, मुरादाबाद
मतबा अहद-ए-आफ़रीं, हैदराबाद
एदारा अहल-ए-सुन्नत व जमात, हैदराबाद
मकतबा अहले सुन्नत वलजमाअत, दिल्ली
मतबूआ तबा अहल-ए-जहाँ, गया
अंजुमन-ए-अज़ादारान-ए-अहल-ए-बैत, हैदराबाद
मरकज़ी जमीयत अहल-ए-हदीस हिन्द, दिल्ली
अंजुमन अहल-ए-हदीस, लुधियाना
इदारा-ए-इरफ़ान अहल-ए-बैत
बज़्म-ए-अहल-ए-क़लम हज़ारा
सुना है उस की सियह-चश्मगी क़यामत हैसो उस को सुरमा-फ़रोश आह भर के देखते हैं
अब तक दिल-ए-ख़ुश-फ़ह्म को तुझ से हैं उमीदेंये आख़िरी शम'एँ भी बुझाने के लिए आ
ऐ मिरे सुब्ह-ओ-शाम-ए-दिल की शफ़क़तू नहाती है अब भी बान में क्या
अब भी दिलकश है तिरा हुस्न मगर क्या कीजेऔर भी दुख हैं ज़माने में मोहब्बत के सिवा
अब के हम बिछड़े तो शायद कभी ख़्वाबों में मिलेंजिस तरह सूखे हुए फूल किताबों में मिलें
आब शायरी
आब दीदा शायरी
उर्दू क्लासिकी शायरी, शब्द और अर्थ की भव्यता का दर्शन और काव्य-शास्त्र है । इस में लफ़्ज़ों के माध्यम से अर्थों का संसार बनाने की कोशिश मिलती है । शब्द के व्यवहार से ही शायरी अस्तित्व में आती है । शब्द निरा शब्द नहीं होता बल्कि शेर के अर्थ निर्धारण में उसका बड़ा रोल होता है । आह भी क्लासिकी शायरी का ऐसा ही एक शब्द है जिसके इर्द-गिर्द अर्थ-शास्त्र की पूरी परंपरा मौजूद है । इस परंपरा में उर्दू शायरी का आशिक़ हमें आहें भरता हुआ नज़र आता है । इस अर्थ-शास्त्र को और समझने की कोशिश कीजिए तो पता चलता है कि आशिक़ जितनी आहें भरता है उसका माशूक़ उतना ही ज़ुल्म करता है । उसका दिल अपने आशिक़ के लिए नहीं पसीजता । यहाँ प्रस्तुत चुनिंदा शायरी में आप उर्दू शायरी के इस अर्थ-शास्त्र और उसकी परंपरा को महसूस करेंगे ।
हुबحب
love
Aab-e-Gum
मुश्ताक़ अहमद यूसुफ़ी
गद्य/नस्र
Aab-e-Rawan
ज़फ़र इक़बाल
ग़ज़ल
Agar Ab Bhi Na Jage To
शम्श नवेद उसमानी
अनुवाद
Urdu Stage Drama
डॉ. ए.बी. अशरफ
नाटक इतिहास एवं समीक्षा
Aab-e-Hayat
मोहम्मद हुसैन आज़ाद
इतिहास
आब-ए-हयात
Ahd-e-Wusta Ka Hindustan
सतीश चंद्र
भारत का इतिहास
Aab-e-Kausar
शैख़ मोहम्मद इकराम
इस्लामिक इतिहास
Ab Tak (Kulliyat-e-Ghazal)
कुल्लियात
Gilchrist Aur Uska Ahd
मोहम्मद अतीक़ सिद्दीक़ी
आलोचना
Aab-e-Hayat Ka Tanqeedi Aur Tahqeeqi Mutala
सय्यद सज्जाद
तज़्किरा / संस्मरण / जीवनी
Attharahvin Sadi Mein Hindustani Muasharat
मोहम्मद उमर
शायरी तन्क़ीद
वफ़ा इख़्लास क़ुर्बानी मोहब्बतअब इन लफ़्ज़ों का पीछा क्यूँ करें हम
हम आह भी करते हैं तो हो जाते हैं बदनामवो क़त्ल भी करते हैं तो चर्चा नहीं होता
जो अहद ही कोई न होतो क्या ग़म-ए-शिकस्तगी
अगर खो गया इक नशेमन तो क्या ग़ममक़ामात-ए-आह-ओ-फ़ुग़ाँ और भी हैं
आह को चाहिए इक उम्र असर होते तककौन जीता है तिरी ज़ुल्फ़ के सर होते तक
आगे आती थी हाल-ए-दिल पे हँसीअब किसी बात पर नहीं आती
अज़ीज़ इतना ही रक्खो कि जी सँभल जाएअब इस क़दर भी न चाहो कि दम निकल जाए
अच्छा ख़ासा बैठे बैठे गुम हो जाता हूँअब मैं अक्सर मैं नहीं रहता तुम हो जाता हूँ
अब के गर तू मिले तो हम तुझ सेऐसे लिपटें तिरी क़बा हो जाएँ
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