aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
परिणाम ".ogag"
बाक़र आगाह वेलोरी
1745 - 1805
शायर
बिस्मिल आग़ाई
born.1931
गणेश गायकवाड़ आगाज
born.1970
आगाह देहलवी
1839 - 1917
आग़ाज़ बुलढाणवी
आग़ाज़ बरनी
विक्रम मिश्र अनगढ़
हज़रत औघट शाह वारिसी जे. पी. नगर
लेखक
अगाथा क्रिस्टी
आग़ाज़ बुरहानपूरी
अफाफ़ इमाम नूरी
एगन लारसन
जलालुद्दीन जलाल आग़ाज़ी
असग़र हुसैन ख़ाँ नज़ीर
मक्तबा-ए-आहंग प्रतापगढ़
पर्काशक
अगर तलाश करूँ कोई मिल ही जाएगामगर तुम्हारी तरह कौन मुझ को चाहेगा
ये ज़ुल्फ़ अगर खुल के बिखर जाए तो अच्छाइस रात की तक़दीर सँवर जाए तो अच्छा
दश्त में दामन-ए-कोहसार में मैदान में हैबहर में मौज की आग़ोश में तूफ़ान में है
इन्हीं पत्थरों पे चल कर अगर आ सको तो आओमिरे घर के रास्ते में कोई कहकशाँ नहीं है
तुम्हारा हिज्र मना लूँ अगर इजाज़त होमैं दिल किसी से लगा लूँ अगर इजाज़त हो
तौबा, उर्दू की मधुशाला शायरी की मूल शब्दावली है । तौबा को विषय बनाते हुए उर्दू शायरी ने अपने विषय-वस्तु को ख़ूब विस्तार दिया है । ख़ास बात ये है कि पश्चाताप का विषय उर्दू शायरी में शोख़ी और शरारत के पहलू को सामने लाता है । मदिरा पान करने वाला पात्र अपने उपदेशक के कहने पर शराब से तौबा तो करता है लेकिन कभी मौसम की ख़ुशगवारी और कभी शराब की प्रबल इच्छा की वजह से ये तौबा टूट जाती है । यहाँ प्रस्तुत चुनिंदा शायरी में आप उपदेशक और शराब पीने वाले की शोख़ी और छेड़-छाड़ का आनंद लीजिए ।
आगही उस ख़ज़ाने की चाभी है जहाँ से सूफ़ी संतों से लेकर फ़लसफ़ियों ने भी बहुत कुछ हासिल किया है। इल्म और आगही की दुनिया मे इन्क़िलाब के इस दौर से पहले भी शायरों ने इस की अहमियत को समझा और तस्लीम किया है। यह आगही अपने वजुद से मुलअल्लिक़ भी हो सकती है और दुनिया के बारे में भी। आगही शायरी की एक झलक पेश हैः
ख़ुद्दारी या आत्मसम्मान वह पूंजी है जिस पर शायर हमेशा नाज़ करता रहा है और इसे जताने में भी कभी झिझक महसूस नहीं की। अपने वुजूद की अहमियत को समझना और उसे पूरा-पूरा सम्मान देना शायरों की ख़ास पहचान भी रही है। शायर सब कुछ बर्दाश्त कर लेता है लेकिन अपनी ख़ुद्दारी पर लगने वाली हल्की सी चोट से भी तिलमिला उठता है। खुद्दारी शायरी कई ख़ूबसूरत मिसालों से भरी हैः
Shaoor
जीशान-उल-हस्सन उस्मानी
अफ़साना
उर्दू नॉवेल आग़ाज़-ओ-इर्तेक़ा
अज़ीमुश्शान सिद्दीक़ी
फ़िक्शन तन्क़ीद
Ahang Aur Arooz
कमाल अहमद सिद्दीक़ी
Urdu Zaban Ka Aaghaz
ख़ुर्शीद हमरा सिद्दीक़ी
भाषा
Urdu Aur Awami Zaraey Iblagh
मोहम्मद शाहिद हुसैन
पत्रकारिता
Agar Ab Bhi Na Jage To
शम्श नवेद उसमानी
अनुवाद
Urdu Radio Aur Television Men Tarsel-o-Iblagh Ki Zaban
आलोचना
अरूज़ आहंग और बयान
शम्सुर रहमान फ़ारूक़ी
छंदशास्र
अलीगढ़ तहरीक
नसीम क़ुरैशी
साहित्यिक आंदोलन
उर्दू ज़बान और इब्लाग़-ए-आम्मा
मशावर्ती कमेटी
आहंग-ए-ग़ालिब
प्रेम चंद लाहोरी
शायरी तन्क़ीद
जदीद इबलाग़-ए-अाम
प्रो. मेहदी हसन
Hindustani Film Ka Aghaz-o-Irtiqa
अलिफ़ अंसारी
मनोरंजन
Awami Zara-e-Iblagh, Tarseel Aur Tameer-o-Taraqqi
देवेन्द्र इस्सर
Taraqqi Pasand Urdu Ghazal
मोहम्मद सादिक़ मोसोवी
ग़ज़ल तन्क़ीद
अगर ये कह दो बग़ैर मेरे नहीं गुज़ारा तो मैं तुम्हाराया उस पे मब्नी कोई त'अस्सुर कोई इशारा तो मैं तुम्हारा
आग़ाज़-ए-मोहब्बत है आना है न जाना हैअश्कों की हुकूमत है आहों का ज़माना है
अगर तुम्हारी अना ही का है सवाल तो फिरचलो मैं हाथ बढ़ाता हूँ दोस्ती के लिए
अगर यक़ीं नहीं आता तो आज़माए मुझेवो आइना है तो फिर आइना दिखाए मुझे
उस घड़ी की आमद की आगही से डरते होपहले भी तो गुज़रे हैं
दुख अपना अगर हम को बताना नहीं आतातुम को भी तो अंदाज़ा लगाना नहीं आता
अपनी हस्ती ही से हो जो कुछ होआगही गर नहीं ग़फ़लत ही सही
आग़ाज़-ए-आशिक़ी का मज़ा आप जानिएअंजाम-ए-आशिक़ी का मज़ा हम से पूछिए
आगाह अपनी मौत से कोई बशर नहींसामान सौ बरस का है पल की ख़बर नहीं
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