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नज़्म
हसन कूज़ा-गर (4)
ख़ुदा की तरह अपने फ़न के ख़ुदा सर-ब-सर हम
आरज़ुएँ कभी पायाब तो सर्याब कभी
नून मीम राशिद
ग़ज़ल
ख़मोशी में निहाँ ख़ूँ-गश्ता लाखों आरज़ूएँ हैं
चराग़-ए-मुर्दा हूँ मैं बे-ज़बाँ गोर-ए-ग़रीबाँ का
मिर्ज़ा ग़ालिब
नज़्म
अलविदा
हमारी आरज़ुएँ तेरे दालानों में रक़्साँ हैं
नुक़ूश-ए-अहद-ए-रफ़्ता तेरे माथे पर नुमायाँ हैं
अब्दुल अहद साज़
नज़्म
बे-कराँ रात के सन्नाटे में
तेरे बिस्तर पे मिरी जान कभी
आरज़ुएँ तिरे सीने के कुहिस्तानों में
नून मीम राशिद
ग़ज़ल
मज़े वो पाए हैं आरज़ू में कि दिल की ये आरज़ू है यारब
तमाम दुनिया की आरज़ूएँ मिरे लिए इंतिख़ाब कर दे
अख़्तर शीरानी
नज़्म
मेरे नदीम!
वो आरज़ुएँ कहाँ सो गई हैं मेरे नदीम?
वो ना-सुबूर निगाहें, वो मुंतज़िर राहें
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
नज़्म
मुकाफ़ात
लो आ गई हैं वो बन कर मुहीब तस्वीरें
वो आरज़ुएँ के जिन का किया था ख़ूँ मैं ने