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नज़्म
जवाब-ए-शिकवा
बिजलियाँ जिस में हों आसूदा वो ख़िर्मन तुम हो
बेच खाते हैं जो अस्लाफ़ के मदफ़न तुम हो
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
बिंत-ए-हव्वा
मेरे औसाफ़ गिनाने को ये काग़ज़ कम हैं
सिंफ़-ए-नाज़ुक हूँ मगर रूह मिरी रुस्तम है
हिना रिज़्वी
ग़ज़ल
सुनो तुम अपनी जो तेग़-ए-निगाह के औसाफ़
जो तुम को सुनना हो उस शोख़-ए-दिल-सिताँ से सुनो
बहादुर शाह ज़फ़र
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ग़ज़ल
बे-मुरव्वत बेवफ़ा ना-मेहरबाँ ना-आश्ना
जिस के ये औसाफ़ कोई उस से हो क्या आश्ना
मीर मोहम्मदी बेदार
ग़ज़ल
तीन सौ तेरह के जैसे शर्त हैं औसाफ़ भी
फ़त्ह ना-मुम्किन है ख़ाली नारा-ए-तकबीर पर
अब्दुस सत्तार दानिश
ग़ज़ल
तुम हो मुजरिम हम हैं मुल्ज़िम चलो नया इंसाफ़ करें
तुम भी हमें मुआ'फ़ी दे दो हम भी तुम्हें मुआ'फ़ करें
सरदार पंछी
शेर
तिरी तारीफ़ हो ऐ साहिब-ए-औसाफ़ क्या मुमकिन
ज़बानों से दहानों से तकल्लुम से बयानों से
कल्ब-ए-हुसैन नादिर
ग़ज़ल
बताए जाते हैं औसाफ़ वो अपनी अदाओं के
ये शान-ए-दिल-रुबाई है ये तर्ज़-ए-जाँ-सतानी है