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नज़्म
मुझ से पहली सी मोहब्बत मिरी महबूब न माँग
पीप बहती हुई गलते हुए नासूरों से
लौट जाती है उधर को भी नज़र क्या कीजे
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
नज़्म
रदीफ़ और क़ाफ़िए
अगर शाइ'र कहें बे-क़ाफ़िया है लफ़्ज़-ए-बहनोई
मिरे बहनोई सर पर शाइ'रों के मारना डोई
राजा मेहदी अली ख़ाँ
नज़्म
मेहमान-दारी
भाई भी हैं बहनोई भी भावज भी बहन भी
बैठा है भतीजा भी भतीजे की दुल्हन भी
अली मंज़ूर हैदराबादी
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नज़्म
फ़र्ज़ करो
शाइ'र भी जो मीठी बानी बोल के मन को हरते हैं
बंजारे जो ऊँचे दामों जी के सौदे करते हैं
इब्न-ए-इंशा
नज़्म
दरख़्त-ए-ज़र्द
हमारा बाहमी रिश्ता जो हासिल-तर था रिश्तों का
हमारा तौर-ए-बे-ज़ारी भी कितना वालिहाना है
जौन एलिया
ग़ज़ल
एक ये दिन जब लाखों ग़म और काल पड़ा है आँसू का
एक वो दिन जब एक ज़रा सी बात पे नदियाँ बहती थीं
जावेद अख़्तर
शेर
वो टूटते हुए रिश्तों का हुस्न-ए-आख़िर था
कि चुप सी लग गई दोनों को बात करते हुए