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नज़्म
पास रहो
और बच्चों के बिलकने की तरह क़ुलक़ुल-ए-मय
बहर-ए-ना-सूदगी मचले तो मनाए न मने
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
नज़्म
इबलीस की मजलिस-ए-शूरा
कौन बहर-ए-रुम की मौजों से है लिपटा हुआ
गाह बालद-चूँ-सनोबर गाह नालद-चूँ-रुबाब
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
ख़िज़्र-ए-राह
बंदगी में घट के रह जाती है इक जू-ए-कम-आब
और आज़ादी में बहर-ए-बे-कराँ है ज़िंदगी
अल्लामा इक़बाल
हिंदी ग़ज़ल
कई फ़ाक़े बिता कर मर गया जो उस के बारे में
वो सब कहते हैं अब ऐसा नहीं ऐसा हुआ होगा
दुष्यंत कुमार
ग़ज़ल
कश्ती-ए-दिल की इलाही बहर-ए-हस्ती में हो ख़ैर
नाख़ुदा मिलते हैं लेकिन बा-ख़ुदा मिलता नहीं
अकबर इलाहाबादी
ग़ज़ल
हमारे दिल को बहर-ए-ग़म की क्या ताक़त जो ले बैठे
वो कश्ती डूब कब सकती है जिस के ना-ख़ुदा तुम हो