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नज़्म
मुझ से पहली सी मोहब्बत मिरी महबूब न माँग
ख़ाक में लुथड़े हुए ख़ून में नहलाए हुए
जिस्म निकले हुए अमराज़ के तन्नूरों से
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
ग़ज़ल
ये ख़ुनुक ख़ुनुक हवाएँ ये झुकी झुकी घटाएँ
वो नज़र भी क्या नज़र है जो समझ न ले इशारा
शकील बदायूनी
नज़्म
जुगनू
उसी ज़माने में कहते हैं मेरे दादा ने
जब अर्ज़-ए-हिन्द सिंची ख़ून से ''सपूतों'' के
फ़िराक़ गोरखपुरी
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विषय
ख़ून
ख़ून शायरी
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ग़ज़ल
दिन में हम को देखने वालो अपने अपने हैं औक़ात
जाओ न तुम इन ख़ुश्क आँखों पर हम रातों को रो लें हैं
फ़िराक़ गोरखपुरी
नज़्म
आधी रात
ख़ुनुक धुँदलके की आँखें भी नीम ख़्वाबीदा
सितारे हैं कि जहाँ पर है आँसुओं का कफ़न
फ़िराक़ गोरखपुरी
नज़्म
मंज़र
एक पल तैरा, चला, फूट गया, आहिस्ता
बहुत आहिस्ता, बहुत हल्का, ख़ुनुक-रंग शराब
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
नज़्म
चला आ रहा हूँ समुंदरों के विसाल से
है हज़ार रंग से ख़्वाब-हा-ए-ख़ुनुक लिए
चला आ रहा हूँ समुंदरों का नमक लिए
नून मीम राशिद
ग़ज़ल
जुम्बिश-ए-अबरू-ओ-मिज़्गाँ कै ख़ुनुक साए में
आतिश-अफ़रोज़ जुनूँ-ख़ेज़ शरर-बार आँखें
अली सरदार जाफ़री
नज़्म
जुदाई
कि बू-ए-दर्द में हर साँस है बसाई हुई
ख़ुनुक उदास फ़ज़ाओं की आँखों में आँसू