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नज़्म
शिकवा
क़ौम अपनी जो ज़र-ओ-माल-ए-जहाँ पर मरती
बुत-फ़रोशीं के एवज़ बुत-शिकनी क्यूँ करती
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
जवाब-ए-शिकवा
हर कोई मस्त-ए-मय-ए-ज़ौक़-ए-तन-आसानी है
तुम मुसलमाँ हो ये अंदाज़-ए-मुसलमानी है
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
तुलू-ए-इस्लाम
दिगर शाख़-ए-ख़लील अज़ ख़ून-ए-मा नमनाक मी गर्दद
ब-बाज़ार-ए-मोहब्बत नक़्द-ए-मा कामिल अय्यार आमद
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
ये बातें झूटी बातें हैं
वो इल्म में अफ़लातून सुने वो शेर में तुलसीदास हुए
वो तीस बरस के होते हैं वो बी-ए एम-ए पास हुए
इब्न-ए-इंशा
नज़्म
इंतिसाब
कार-ख़ानों के भूके जियालों के नाम
बादशाह-ए-जहाँ वाली-ए-मा-सिवा, नाएब-उल-अल्लाह फ़िल-अर्ज़
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
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ग़ज़ल
मोहब्बत के लिए दिल ढूँढ़ कोई टूटने वाला
ये वो मय है जिसे रखते हैं नाज़ुक आबगीनों में
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
तस्वीर-ए-दर्द
न सहबा हूँ न साक़ी हूँ न मस्ती हूँ न पैमाना
मैं इस मय-ख़ाना-ए-हस्ती में हर शय की हक़ीक़त हूँ
अल्लामा इक़बाल
ग़ज़ल
यारो कुछ तो ज़िक्र करो तुम उस की क़यामत बाँहों का
वो जो सिमटते होंगे उन में वो तो मर जाते होंगे