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नज़्म
शिकवा
तोड़े मख़्लूक़ ख़ुदावंदों के पैकर किस ने
काट कर रख दिए कुफ़्फ़ार के लश्कर किस ने
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
फ़रमान-ए-ख़ुदा
क्यूँ ख़ालिक़ ओ मख़्लूक़ में हाइल रहें पर्दे
पीरान-ए-कलीसा को कलीसा से उठा दो
अल्लामा इक़बाल
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नज़्म
मौज़ू-ए-सुख़न
इन दमकते हुए शहरों की फ़रावाँ मख़्लूक़
क्यूँ फ़क़त मरने की हसरत में जिया करती है
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
नज़्म
हसन कूज़ा-गर (4)
कभी जाम ओ मीना की लिम तक न पहुँचीं
यही आज इस रंग ओ रोग़न की मख़्लूक़-ए-बे-जाँ
नून मीम राशिद
ग़ज़ल
इक गर्दन-ए-मख़्लूक़ जो हर हाल में ख़म है
इक बाज़ू-ए-क़ातिल है कि ख़ूँ-रेज़ बहुत है
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
नज़्म
तसलसुल
दफ़्न कर देगा जो ख़ालिक़ को भी मख़्लूक़ समेत
और ये आबादियाँ बन जाएँगी फिर रेत ही रेत
अहमद फ़राज़
ग़ज़ल
भला मख़्लूक़ ख़ालिक़ की सिफ़त समझे कहाँ क़ुदरत
उसी से नेति नेति ऐ यार दीदों ने पुकारा है
भारतेंदु हरिश्चंद्र
नज़्म
क़हत-ए-बंगाल
इफ़्लास की मारी हुई मख़्लूक़ सर-ए-राह
बे-गोर-ओ-कफ़न ख़ाक-ब-सर देख रहा हूँ