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नज़्म
भली सी एक शक्ल थी
न ये कि वो चले तो कहकशाँ सी रहगुज़र लगे
मगर वो साथ हो तो फिर भला भला सफ़र लगे
अहमद फ़राज़
हास्य
रस्म-ओ-रह गो अफ़सरों से इस क़दर अच्छी नहीं
हम अगर मक्खन लगाएँ वो न लगवाएँगे क्या
सय्यद फ़हीमुद्दीन
नज़्म
जश्न-ए-आज़ादी
दूध में पानी बा-आज़ादी मिलाना चाहिए
जिस से मतलब हो उसे मक्खन लगाना चाहिए
सरफ़राज़ शाहिद
ग़ज़ल
मगर लिखवाए कोई उस को ख़त तो हम से लिखवाए
हुई सुब्ह और घर से कान पर रख कर क़लम निकले