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नज़्म
ज़िंदगी से डरते हो
लब अगर नहीं हिलते हाथ जाग उठते हैं
हाथ जाग उठते हैं राह का निशाँ बन कर
नून मीम राशिद
नज़्म
ताज-महल
सब्त जिस राह में हों सतवत-ए-शाही के निशाँ
उस पे उल्फ़त भरी रूहों का सफ़र क्या मअ'नी
साहिर लुधियानवी
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ग़ज़ल
ये अक़्ल ओ दिल हैं शरर शोला-ए-मोहब्बत के
वो ख़ार-ओ-ख़स के लिए है ये नीस्ताँ के लिए
अल्लामा इक़बाल
ग़ज़ल
कहीं तार-ए-दामन-ए-गुल मिले तो ये मान लें कि चमन खिले
कि निशान फ़स्ल-ए-बहार का सर-ए-शाख़-सार कोई तो हो
अहमद फ़राज़
ग़ज़ल
दाग़ दामन के हों दिल के हों कि चेहरे के 'फ़राज़'
कुछ निशाँ उम्र की रफ़्तार से लग जाते हैं
अहमद फ़राज़
नज़्म
तराना-ए-हिन्दी
यूनान ओ मिस्र ओ रूमा सब मिट गए जहाँ से
अब तक मगर है बाक़ी नाम-ओ-निशाँ हमारा