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नज़्म
जवाब-ए-शिकवा
तपिश-अंदोज़ है इस नाम से पारे की तरह
ग़ोता-ज़न नूर में है आँख के तारे की तरह
अल्लामा इक़बाल
ग़ज़ल
जब वो जमाल-ए-दिल-फ़रोज़ सूरत-ए-मेहर-ए-नीमरोज़
आप ही हो नज़ारा-सोज़ पर्दे में मुँह छुपाए क्यूँ
मिर्ज़ा ग़ालिब
ग़ज़ल
अभी इस तरफ़ न निगाह कर मैं ग़ज़ल की पलकें सँवार लूँ
मिरा लफ़्ज़ लफ़्ज़ हो आईना तुझे आइने में उतार लूँ
बशीर बद्र
नज़्म
इतना मालूम है!
दोस्तों को भी किस उज़्र से रोका होगा
याद कर के मुझे नम हो गई होंगी पलकें
परवीन शाकिर
ग़ज़ल
शायद वो दिन पहला दिन था पलकें बोझल होने का
मुझ को देखते ही जब उस की अंगड़ाई शर्माई है
जौन एलिया
नज़्म
हम जो तारीक राहों में मारे गए
सूलियों पर हमारे लबों से परे
तेरे होंटों की लाली लपकती रही