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नज़्म
तस्वीर-ए-दर्द
जो है पर्दों में पिन्हाँ चश्म-ए-बीना देख लेती है
ज़माने की तबीअत का तक़ाज़ा देख लेती है
अल्लामा इक़बाल
ग़ज़ल
जो कान लगा कर सुनते हैं क्या जानें रुमूज़ मोहब्बत के
अब होंट नहीं हिलने पाते और पहरों बातें होती हैं
आरज़ू लखनवी
नज़्म
रामायण का एक सीन
अस्बाब-ए-ज़ाहिरी में न इन पर करो नज़र
क्या जाने क्या है पर्दा-ए-क़ुदरत में जल्वा-गर
चकबस्त बृज नारायण
नज़्म
मुझे सोचने दे
दूर साहिल पे वो शफ़्फ़ाफ़ मकानों की क़तार
सरसराते हुए पर्दों में सिमटते गुलज़ार
साहिर लुधियानवी
नज़्म
बरसात की बहारें
परदेसी ने हमारी अब के भी सुध भुलाई
अब के भी छावनी जा परदेस में है छाई