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नज़्म
हस्ब-ए-फ़र्माइश
मैं तुझे शम्अ' कहूँ और कहूँ परवानो
आओ उस शम्अ' के होंटों को ख़ुशी से चूमो
हबीब जालिब
नज़्म
बाबा गाँधी
ऐ क़ौम वतन के परवानो लो अपने फ़र्ज़ को पहचानो
अब जेल से ये पैग़ाम हमें भिजवा दिया गाँधी बाबा ने
आफ़ताब रईस पानीपती
ग़ज़ल
गुदाज़-ए-शम्अ' की सूरत जवाज़-ए-ग़म करो पैदा
ये परवानो तुम्हारा सोज़-ए-पिन्हाँ कौन देखेगा
जुंबिश ख़ैराबादी
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ग़ज़ल
इल्म-ओ-फ़न के परवानो ये भी क्या क़यामत है
'राज़' को यहाँ कोई राज़-दाँ नहीं मिलता
ख़लील-उर-रहमान राज़
ग़ज़ल
कुछ तो हवा भी सर्द थी कुछ था तिरा ख़याल भी
दिल को ख़ुशी के साथ साथ होता रहा मलाल भी
परवीन शाकिर
नज़्म
शिकवा
अपने परवानों को फिर ज़ौक़-ए-ख़ुद-अफ़रोज़ी दे
बर्क़-ए-देरीना को फ़रमान-ए-जिगर-सोज़ी दे
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
जवाब-ए-शिकवा
दिल से जो बात निकलती है असर रखती है
पर नहीं ताक़त-ए-परवाज़ मगर रखती है