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नज़्म
मौज़ू-ए-सुख़न
ये हसीं खेत फटा पड़ता है जौबन जिन का!
किस लिए इन में फ़क़त भूक उगा करती है
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
नज़्म
मुफ़्लिसी
जब हो फटा दुपट्टा तो काहे से मुँह छुपाए
ले शाम से वो सुब्ह तलक गो कि नाचे गाए
नज़ीर अकबराबादी
हास्य
मैं तो फेंट फेंट के फट गया मैं फटा हुआ वही ताश हूँ
मुझे खेलता कोई और है मुझे फेंटता कोई और है
ज़ियाउल हक़ क़ासमी
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