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नज़्म
फ़र्ज़ करो
फ़र्ज़ करो ये रोग हो झूटा झूटी पीत हमारी हो
फ़र्ज़ करो इस पीत के रोग में साँस भी हम पर भारी हो
इब्न-ए-इंशा
नज़्म
मुझ से पहली सी मोहब्बत मिरी महबूब न माँग
पीप बहती हुई गलते हुए नासूरों से
लौट जाती है उधर को भी नज़र क्या कीजे
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
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नज़्म
नया शिवाला
हर सुब्ह उठ के गाएँ मंतर वो मीठे मीठे
सारे पुजारियों को मय पीत की पिला दें
अल्लामा इक़बाल
ग़ज़ल
कहें हैं सब्र किस को आह नंग ओ नाम है क्या शय
ग़रज़ रो पीट कर उन सब को हम यक बार बैठे हैं
इंशा अल्लाह ख़ान इंशा
नज़्म
जुगनू
बिफर गए थे हमारे वतन के पीर ओ जवाँ
दयार-ए-हिन्द में रन पड़ गया था चार तरफ़
फ़िराक़ गोरखपुरी
ग़ज़ल
पीत में ऐसे लाख जतन हैं लेकिन इक दिन सब नाकाम
आप जहाँ में रुस्वा होगे वाज़ हमें फ़रमाते हो
इब्न-ए-इंशा
ग़ज़ल
हम से भी पीत की बात करो कुछ हम से भी लोगो प्यार करो
तुम तो परेशाँ हो भी सकोगे हम को यहाँ पे दवाम कहाँ