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नज़्म
रोटियाँ
जिस जा पे हाँडी चूल्हा तवा और तनूर है
ख़ालिक़ की क़ुदरतों का उसी जा ज़ुहूर है
नज़ीर अकबराबादी
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शेर
मोहब्बत में नहीं है फ़र्क़ जीने और मरने का
उसी को देख कर जीते हैं जिस काफ़िर पे दम निकले
मिर्ज़ा ग़ालिब
ग़ज़ल
दाम-ए-हर-मौज में है हल्क़ा-ए-सद-काम-ए-नहंग
देखें क्या गुज़रे है क़तरे पे गुहर होते तक
मिर्ज़ा ग़ालिब
ग़ज़ल
हज़ारों ख़्वाहिशें ऐसी कि हर ख़्वाहिश पे दम निकले
बहुत निकले मिरे अरमान लेकिन फिर भी कम निकले