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ग़ज़ल
फूलों से उस के जबकि चमन में मिलाए होंठ
नाज़ुक ज़ियादा रग से समन के भी पाए होंठ
असद अली ख़ान क़लक़
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ग़ज़ल
फ़क़त ज़ाहिद पे क्या मौक़ूफ़ सब की राल टपकी है
वो शोख़ी वो नुमू के दिन वो चेहरा बे-डलक तेरा
शाद अज़ीमाबादी
ग़ज़ल
मय की मज़म्मत और जनाब-ए-शैख़ फिर इस चटख़ारे से
राल यक़ीनन टपकी होगी वर्ना क्यों हैं गीले होंट
मुबारक मुंगेरी
नज़्म
तुम कहते हो
मस्तूर मोहब्बतों के राज़ उगलते उगलते
तुम ज़बान से टपकती राल पोंछना भूल गए हो
आरिफ़ा शहज़ाद
ग़ज़ल
इस तवक़्क़ो' पे कि देखूँ कभी आते जाते
घिस गए पाँव रह-ए-दोस्त में जाते जाते