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नज़्म
रिश्वत
वो अगर ठग है तो ये डाकू है वो बट-मार है
आज हर गर्दन में काली जीत का इक हार है
जोश मलीहाबादी
नज़्म
झोंपड़ा
इस में ही चोर-ठग हैं इसी में अमोल हैं
इस में ही रोनी शक्ल इसी में ढिढोल हैं
नज़ीर अकबराबादी
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ग़ज़ल
ठग रहा अत्तार बन कर क्यों वो सारे शहर को
नाम दे कर इत्र का वो बेचता है ज़हर को
डॉ. भाग्यश्री जोशी
नज़्म
जवाब-ए-शिकवा
ता-सर-ए-अर्श भी इंसाँ की तग-ओ-ताज़ है क्या
आ गई ख़ाक की चुटकी को भी परवाज़ है क्या