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aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair

jis ke hote hue hote the zamāne mere

रद करें डाउनलोड शेर

संसद पर शेर

हम आह भी करते हैं तो हो जाते हैं बदनाम

वो क़त्ल भी करते हैं तो चर्चा नहीं होता

अकबर इलाहाबादी

माना कि तेरी दीद के क़ाबिल नहीं हूँ मैं

तू मेरा शौक़ देख मिरा इंतिज़ार देख

अल्लामा इक़बाल

हज़ारों ख़्वाहिशें ऐसी कि हर ख़्वाहिश पे दम निकले

बहुत निकले मिरे अरमान लेकिन फिर भी कम निकले

मिर्ज़ा ग़ालिब

कुछ तो मजबूरियाँ रही होंगी

यूँ कोई बेवफ़ा नहीं होता

बशीर बद्र

तुम तकल्लुफ़ को भी इख़्लास समझते हो 'फ़राज़'

दोस्त होता नहीं हर हाथ मिलाने वाला

अहमद फ़राज़

ये जब्र भी देखा है तारीख़ की नज़रों ने

लम्हों ने ख़ता की थी सदियों ने सज़ा पाई

मुज़फ़्फ़र रज़्मी

हम को उन से वफ़ा की है उम्मीद

जो नहीं जानते वफ़ा क्या है

मिर्ज़ा ग़ालिब

नशा पिला के गिराना तो सब को आता है

मज़ा तो तब है कि गिरतों को थाम ले साक़ी

अल्लामा इक़बाल

शाम तक सुब्ह की नज़रों से उतर जाते हैं

इतने समझौतों पे जीते हैं कि मर जाते हैं

वसीम बरेलवी

शोहरत की बुलंदी भी पल भर का तमाशा है

जिस डाल पे बैठे हो वो टूट भी सकती है

बशीर बद्र

सफ़र में धूप तो होगी जो चल सको तो चलो

सभी हैं भीड़ में तुम भी निकल सको तो चलो

निदा फ़ाज़ली

सारे जहाँ से अच्छा हिन्दोस्ताँ हमारा

हम बुलबुलें हैं इस की ये गुलसिताँ हमारा

अल्लामा इक़बाल

तू इधर उधर की बात कर ये बता कि क़ाफ़िले क्यूँ लुटे

तिरी रहबरी का सवाल है हमें राहज़न से ग़रज़ नहीं

शहाब जाफ़री

तुम से पहले वो जो इक शख़्स यहाँ तख़्त-नशीं था

उस को भी अपने ख़ुदा होने पे इतना ही यक़ीं था

हबीब जालिब

चेहरे पे सारे शहर के गर्द-ए-मलाल है

जो दिल का हाल है वही दिल्ली का हाल है

मलिकज़ादा मंज़ूर अहमद

यक़ीन हो तो कोई रास्ता निकलता है

हवा की ओट भी ले कर चराग़ जलता है

मंज़ूर हाशमी

तुम्हारे पावँ के नीचे कोई ज़मीन नहीं

कमाल ये है कि फिर भी तुम्हें यक़ीन नहीं

दुष्यंत कुमार

मज़हब नहीं सिखाता आपस में बैर रखना

हिन्दी हैं हम वतन है हिन्दोस्ताँ हमारा

अल्लामा इक़बाल

किसी के वास्ते राहें कहाँ बदलती हैं

तुम अपने आप को ख़ुद ही बदल सको तो चलो

निदा फ़ाज़ली

सच घटे या बढ़े तो सच रहे

झूट की कोई इंतिहा ही नहीं

कृष्ण बिहारी नूर

ये कह कह के हम दिल को बहला रहे हैं

वो अब चल चुके हैं वो अब रहे हैं

जिगर मुरादाबादी

दोपहर तक बिक गया बाज़ार का हर एक झूट

और मैं इक सच को ले कर शाम तक बैठा रहा

अज्ञात

ज़िंदगी दी है तो जीने का हुनर भी देना

पाँव बख़्शें हैं तो तौफ़ीक़-ए-सफ़र भी देना

मेराज फ़ैज़ाबादी

तुम्हारी फ़ाइलों में गाँव का मौसम गुलाबी है

मगर ये आँकड़े झूठे हैं ये दा'वा किताबी है

अदम गोंडवी

Jashn-e-Rekhta | 13-14-15 December 2024 - Jawaharlal Nehru Stadium , Gate No. 1, New Delhi

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