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ग़ज़ल
मैं किस हवा में उड़ूँ किस फ़ज़ा में लहराऊँ
दुखों के जाल हर इक सू बिछा गया इक शख़्स
उबैदुल्लाह अलीम
ग़ज़ल
अगर मैं चाहूँ तो 'मुमताज़' आसमाँ में उड़ूँ
गुमाँ यक़ीन को दे दूँ यक़ीं गुमान को मैं
मुमताज़ गुर्मानी
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विषय
अदू
अदू शायरी
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ग़ज़ल
ये आशियाना-ए-सितम चमन में हो तो ख़ूब है
ये जी में है कि ले उड़ूँ क़फ़स तू मेरा हो चुका
साक़िब लखनवी
ग़ज़ल
पर किए हैं जो अता ताक़त-ए-परवाज़ भी दे
या तो मैं खुल के उड़ूँ या मुझे बे-पर कर दे
ज़फर इबन-ए-मतीन
ग़ज़ल
कैसे उड़ूँ मैं क्या उड़ूँ जब कोई कश्मकश सी हो
मेरे ही बाज़ुओं में और मेरे परों के दरमियाँ
रज़ी अख़्तर शौक़
नज़्म
तज़ब्ज़ुब
हो तो सकता है किसी देव के जैसे मैं भी
ले उड़ूँ तुझ को कहीं दूर की दुनियाओं में
मोहम्मद ओवैस मालिक
ग़ज़ल
फ़लक में उड़ूँ पाँव में ज़मीं भी रहे
ज़बाँ से हाँ भी कहूँ ज़ेहन से नहीं भी रहे