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नज़्म
जवाब-ए-शिकवा
हाथ बे-ज़ोर हैं इल्हाद से दिल ख़ूगर हैं
उम्मती बाइस-ए-रुस्वाई-ए-पैग़म्बर हैं
अल्लामा इक़बाल
ग़ज़ल
पुरनम इलाहाबादी
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ग़ज़ल
हफ़ीज़ ताईब
ग़ज़ल
क्या ये कम है उम्मती हूँ मैं तिरे महबूब का
कैसे कह दूँ ऐ ख़ुदा मुझ को मिला कुछ भी नहीं
मक़सूद अनवर मक़सूद
ग़ज़ल
उन को महबूब-ए-ख़ुदा होने का हासिल है शरफ़
शुक्र है मुझ को उन्ही का उम्मती रक्खा गया
एख़लाक़ अहमद एख़लाक़
नज़्म
एक आरज़ू
हुज़ूर मेरी बिसात क्या है कि ना'त लिक्खूँ
मैं आप का इक बहुत गुनहगार उम्मती हूँ