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शेर
तुम अपनी ज़ुल्फ़ से पूछो मिरी परेशानी
कि हाल उस को है मालूम हू-ब-हू मेरा
ज़ैनुल आब्दीन ख़ाँ आरिफ़
शेर
कर दिया तीरों से छलनी मुझे सारा लेकिन
ख़ून होने के लिए उस ने जिगर छोड़ दिया
ज़ैनुल आब्दीन ख़ाँ आरिफ़
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शेर
वो पर्दा-नशीनी की रिआयत है तुम्हारी
हम बात भी ख़ल्वत से निकलने नहीं देते
ज़ैनुल आब्दीन ख़ाँ आरिफ़
ग़ज़ल
क्यूँ आईने में देखा तू ने जमाल अपना
देखा तो ख़ैर देखा पर दिल सँभाल अपना
ज़ैनुल आब्दीन ख़ाँ आरिफ़
ग़ज़ल
मर जाएँगे लेकिन कभी उल्फ़त न करेंगे
हम जीने को अपने ये मुसीबत न करेंगे
ज़ैनुल आब्दीन ख़ाँ आरिफ़
ग़ज़ल
सब से बेहतर है कि मुझ पर मेहरबाँ कोई न हो
हम-नशीं कोई न हो और राज़-दाँ कोई न हो
ज़ैनुल आब्दीन ख़ाँ आरिफ़
ग़ज़ल
सब से बेहतर है कि मुझ पर मेहरबाँ कोई न हो
हम-नशीं कोई न हो और राज़दाँ कोई न हो
ज़ैनुल आब्दीन ख़ाँ आरिफ़
शेर
तेरे कहने से मैं अब लाऊँ कहाँ से नासेह
सब्र जब इस दिल-ए-मुज़्तर को ख़ुदा ने न दिया